रविवार, 1 जनवरी 2012

नए साल पर कुछ पुरानी बातें

कुछ लफ्जों में कसक है
कुछ में है महक
जो कुछ  कहना है
इन दोनों के
दरम्यान की  एक  बात है
फिर सोचती हूं चुप रहूं
तुम्हें  एक  मौका  दूं
खामोशी को  पढऩे का
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संक्रमण का अजीब सा वक्त है ये
सुनसान रास्तों पर महफिल सी मंजिल का  सपना है
जज्बातों और जरूरतों की  दौड़ में
एक रहस्मयी जुस्तुजु की  जीत तय हो गई है
अब हम ऐसे रास्तों पर हैं
की  मंजिल पीछे छूट गई है।
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आंचल पसंद है मुझे
पर मैं इस आंचल को  ही
अपनी आरजू का परचम बनाकर
लहराना चाहती हूं
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रात में नींद नदारद
दिन में सपनों की  पैठ
किसी  उलझन में है वक्त
या यही नई उम्मीद की  शुरुआत है
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अंधेरों में एक  लौ जलती रहे बस
कम से कम चकाचौंध से
अंधे होने का  डर तो न हो।

3 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत खूब!

आपको नव वर्ष 2012 की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
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कल 02/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

संजय भास्‍कर ने कहा…

नव वर्ष पर सार्थक रचना
नववर्ष की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.

शुभकामनओं के साथ
संजय भास्कर

Nidhi ने कहा…

आँचल कू आरज़ू का परचम...वह!!
नया साल बहुत मुबारक हो!!

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