कुछ लफ्जों में कसक है
कुछ में है महक
जो कुछ कहना है
इन दोनों के
दरम्यान की एक बात है
फिर सोचती हूं चुप रहूं
तुम्हें एक मौका दूं
खामोशी को पढऩे का
------
संक्रमण का अजीब सा वक्त है ये
सुनसान रास्तों पर महफिल सी मंजिल का सपना है
जज्बातों और जरूरतों की दौड़ में
एक रहस्मयी जुस्तुजु की जीत तय हो गई है
अब हम ऐसे रास्तों पर हैं
की मंजिल पीछे छूट गई है।
------
आंचल पसंद है मुझे
पर मैं इस आंचल को ही
अपनी आरजू का परचम बनाकर
लहराना चाहती हूं
------
रात में नींद नदारद
दिन में सपनों की पैठ
किसी उलझन में है वक्त
या यही नई उम्मीद की शुरुआत है
------
अंधेरों में एक लौ जलती रहे बस
कम से कम चकाचौंध से
अंधे होने का डर तो न हो।
कुछ में है महक
जो कुछ कहना है
इन दोनों के
दरम्यान की एक बात है
फिर सोचती हूं चुप रहूं
तुम्हें एक मौका दूं
खामोशी को पढऩे का
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संक्रमण का अजीब सा वक्त है ये
सुनसान रास्तों पर महफिल सी मंजिल का सपना है
जज्बातों और जरूरतों की दौड़ में
एक रहस्मयी जुस्तुजु की जीत तय हो गई है
अब हम ऐसे रास्तों पर हैं
की मंजिल पीछे छूट गई है।
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आंचल पसंद है मुझे
पर मैं इस आंचल को ही
अपनी आरजू का परचम बनाकर
लहराना चाहती हूं
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रात में नींद नदारद
दिन में सपनों की पैठ
किसी उलझन में है वक्त
या यही नई उम्मीद की शुरुआत है
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अंधेरों में एक लौ जलती रहे बस
कम से कम चकाचौंध से
अंधे होने का डर तो न हो।
3 टिप्पणियां:
बहुत खूब!
आपको नव वर्ष 2012 की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
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कल 02/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
नव वर्ष पर सार्थक रचना
नववर्ष की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.
शुभकामनओं के साथ
संजय भास्कर
आँचल कू आरज़ू का परचम...वह!!
नया साल बहुत मुबारक हो!!
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