रविवार, 20 नवंबर 2011

तलाक

आँखें आसमान पर 
पाँव जमीं पर 
एक शरीर 
दो हिस्से 
दो रास्ते एक मंजिल
तलाक भी होता होगा 
कुछ यूँ ही 
शौहर मुशायरे में 
बेगम दूर महफ़िल से
 दो जिस्म 
एक जान
एक जिंदगी 
दो आरजू

6 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत खूब!

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 22/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

जब आरजुएं बदल जाएं तो तलाक बेहतर ही होता है ..

Jeevan Pushp ने कहा…

बहुत खूब लिखा है आपने !
मेरी नई पोस्ट पे आपका स्वागत है !

सागर ने कहा…

waah! bhaut khub.... behtreen....

बेनामी ने कहा…

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