शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

दिल का कचरा



बेशर्म ख्वाब 
बेअदब ख्वाइशें
बगावती ख्याल 
ख़ाली से इस दिल में 
कितना कचरा भरा है 

हकीकी से रु ब रु 
हुक्म की तामील करता 
हदों में रहता 
हर शख्स 
उपरोक्त कचरे से दूर
कितना साफ़ सुथरा दिखता है 

आदतों में शुमार अदब 
तहजीब से लदा 
तरकीबों से अलहदा 
ये हुस्न मुझे मगर 
नागँवार लगता है 

अब चाहती हूँ इस जिस्म में भी नूर हो 
शर्मों ह्या की इस चाशनी में 
शरारत का तड़का 
तवे सी रोटी के सुरूर में तंदूरी नान सा गुरूर हो 

दिल में थोडा कचरा होना भी 
जीने के लिए जरूरी है 



8 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 7- 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

http://charchamanch.blogspot.com/

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपके लिखने का अंदाज़ बहुत खूबसूरत है ..बहुत खूब .

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

aapko padhna kuchh hat kar laga.

shukriya.sunder abhivyakti.

नूर की बूँद, “अनामिका” पर, ... देखिए

Anamikaghatak ने कहा…

दिल में थोडा कचरा होना भी जीने के लिए जरूरी है
ये पन्क्ति दिल मे उतर सी गयी………॥अति सुन्दर

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

प्रिय हिमानी जी
सस्नेहाभिवादन !

कविता का शीर्षक "दिल का कचरा" भले ही रख दिया हो आपने , लेकिन दिल के ये सहज भाव ही हैं …
ख़्वाब , ख़्वाहिशें , ख़याल

मुक्तछंद और अलंकार !?
आपकी रचना में अनायास उत्पन्न अलंकार की छटा तो देखते ही बनती है …

हक़ीक़त से रू ब रू
हुक़्म की तामील करता
हदों में रहता
हर शख़्स


शर्मो - हया की चाशनी में शरारत का तड़का बहुत ही प्यारा और अछूता बिंब है , बधाई !

बहुत बहुत दुआएं हैं - "इस जिस्म में भी नूर हो " … आमीन !

शुभकामनाओं सहित …
- राजेन्द्र स्वर्णकार

Udan Tashtari ने कहा…

वाह!! बहुत उत्तम रचना.

दिल में थोडा कचरा होना भी
जीने के लिए जरूरी है....


क्या बात कही है!!

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

दिल में थोडा कचरा होना भी जीने के लिए जरूरी है

kya khoob kaha...

mitthu ने कहा…

"UPROKT" shabd ka istemal khatakta hai... baki thk hi

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