गुरुवार, 18 जून 2009

शतुरमुर्ग न बने .....जनाब

शतुरमुर्ग के बारे में बात कही जाती है की वो जब भी कोई शिकारी या खतरा देखता है अपना सर मिटटी में घुसा लेता है ..........................................मतलब उसने मारे जाने के खतरे से बचने के लिए सर को मिटटी में घुसाने का तरीका अपने लिए आरक्षित कर लिया है बजाये बचने का कोई तरीका तलाशने के वो ख़ुद को छुपा लेना चाहता है ................................................कुछ ऐसी ही स्थिति हमारे देश में वादों विवादों से घिरी रहने वाली आरक्षण की व्यवस्था की है .......................इन दिनों नई सरकार में महिला आरक्षण का मुद्दा जोर शोर से उठाया जा रहा है प्रभुध जनों के लेख इत्यादि छप रहे है तो दो बातें हम भी कहे देते है .......................दरअसल जब अखबार में कार्टून और कहानिया पढने से ज्यादा कुछ जानने में रूचि नही थी तब से आरक्षण नामक ये शब्द सुनते आ रहे है
लेकिन अब जब समझा है तो मामला गड़बड़ सा जान पड़ता है ........................ये व्यवस्था दलितों पिछडो को उन्नत और आधुनिक बनने उनका जीवन इस्तर सुधारने के लिए शुरू की गई थी .................लेकिन क्या २०-२५ वर्षो बाद परिणाम संतोषजनक भी नजर आते है .................निश्चित तौर पर नही ......................आज भी कई ऐसे ग्रामीण इलाके है जहाँ मंदिरों, इस्कुलों , और सार्वजानिक इस्थानो पर दलितों के साथ भेदभाव किया जाता है
कई ऐसे पिछडे वर्ग है जिन्हें २१ सदी का ये आधुनिक भारत देखने तक को नसीब नही है क्योंकि उनकी जिंदगी कही सुदूर घने जंगलों और पहाडों के सायें में तमाम असुविधयों के बिच बीत रही है .........................
और जो मूल मुद्दा लेकर मैंने ये सब लिखना शुरू किया था महिलाएं ...........................यदि उनकी बात की जाए तो
इस आधी आबादी का सशक्तिकरण करने के लिए आरक्षण की व्यवस्था को लागु करके ........................तथाकथित पैरोकार ........शतुरमुर्ग की तरह ही मुख्या कार्य से मुह मोड़ते प्रतीत नही होते ........................इस विषय में पुनः सोचने की जरुरत है क्योंकि क्षेत्र चाहे कोई भी हो योग्यता की जरुरत प्रथम इस्तर पर है ..............जहाँ तक महिलायों की उन्नंती की बात है तो पहले ये इंतजाम किया जाए की घर से निकलने पर उसका बलात्कार का खतरा नही होगा .............उसका कोई बॉस उसका यौन शोषण नही करेगा .........................बस मुस पर फब्तियां कसने वाले लोगो को सजा दी जायेगी ..................दहेज़ के नाम पर किसी लड़की को जिन्दा नही जला दिया जाएगा .............................लड़की होने की वजह से अजन्मे बचे को ही नही मार दिया जाएगा...............................ये तमाम बाते सुनिश्चित हो जायें तब जाकर कही .................इस आधी आबादी को थोड़ा सुकून मिल सकेगा और फ़िर संसद तक पहुचने के लिए किसी वैसाखी की जरुरत नही पड़ेगी और ............................................न ही आरक्षण के मुद्दे पर आरोप प्रत्यारोप की वजह से बाकि जरुरी बातें शेष रह जाएँगी .............................................................................

2 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

सही मे अच्छी विचारणीय पोस्ट लिखी है।

बेनामी ने कहा…

ye thik hai lekin shuru karne mein koi burai nahin hai aur ye sab purush mansikta par depend karta hai jo filhal sudharne vaali nahin hai.

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