हवा का वो हल्का सा झोंका
जब भी छूकर गुजरता है तन को
एक सिरहन सी महसूस होती है मन को
जैसे किसी ने ......नींद से जगा दिया हो
जैसे .............भटकते किसी राही को रास्ता दिखा दिया हो
क्या मालूम कुछ पूछने आई थी ये हवा
या कुछ बताकर चली गयी
क्या मालूम कोई दीया बुझ गया उसके आने से
या बुझे से मेरे मन की लौ को जगा कर चली गईं
मालूम है तो बस इतना कि
हवा आकर चली गई
6 टिप्पणियां:
मालूम है तो बस इतना कि
हवा आकर चली गई
कोमल शब्दों से bunee खूबसूरत रचना .....
ना जाने क्यों अभी अभी क्यों लगा कि वो ठंडी सी पवन अभी अभी मेरे कानो को छो कर गुजर गयी ....बहुत अच्छी रचना लिखी है आपने
उस हवा के बहाव के साथ ही यह टिप्पणी आपके ब्लॉग तक पहुंच गई।
आनन्द आ गया, बहुत अच्छा लिखा है!
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लिखने में बहुत कोमलता है, स्पर्श स्नेह भरा हो जैसे
ये हवा भी अजीब शय है... किसी को गुदगुदाती है किसी को किसी की याद दिलाती है और किसी के लिये कोई संदेश ले कर आ जाती है..
आपकी रचना पढ कर एक पंजावी गाने की दो लाईन याद आ गई
ऎ जे सिली सिली आंदी ए हवा
जरूर कोई रोंदा होंवेगा
यादां मेरी वांगू सीने नाल ला
जरूर कोई रोंदा होंवेंगा
सुन्दर रचना के लिये बधाई
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