गुरुवार, 29 जनवरी 2009

लड़की









संस्कारो का,

कैसा ?

बोझ है ये!!!!!!!!!!!!

जो मुझे कुछ कहने नही देता

कैसा ???????

फ़र्ज़ है ये!!!!

जिसे निभाने के लिये

सब कुछ सहने की

कसौटी पर मुझे खरा उतरना है

सही ग़लत जानते हुए भी

चुप रहकर पुराणी कुरीतियों पर चलना है

मेरे ही अस्तित्व पर मेरा कोई अधिकार नही !!!!!!!!

लेकिन क्यों ??????????

ये प्रश्न पूछने की भी मैं हकदार नही

ये कैसी जंग है जिंदगी में

जिसमे मेरी हार पहले ही तय कर दी गई है

जीतने की जैसे कोई लकीर ही ना हो हथेली में

मेरी पहचान के

माँ,बेटी,बहु,पत्नी और बहिन जैसे कई नाम है

लेकिन एक शब्द judda है इन सब नामो से

जिसकी वजह से मेरा होना ही

किसी पाप की पहचान है ------------लड़की

4 टिप्‍पणियां:

अनिल कान्त ने कहा…

सुंदर और अच्छी कविता .....लड़की होने के नाते जहाँ सारे फ़र्ज़ निभाये ...अच्छा बुआ सब सहा ...अब वक्त आ गया है की लड़की आगे आकर ...सामने से अपने हक़ की लडाई लड़े अगर अपने अस्तित्व को पाना है तो मुश्किलों का सामना तो करना ही पड़ेगा ....हर बुरी और बड़ी मुश्किल से ख़ुद को निकालने के लिए जिस तरह से देश को स्वतंत्र कराने के लिए हमारे स्वतंत्रता सैनानियों ने जी जान लगा दी ....उसी तरह स्त्री को संघर्ष करना होगा ...ताकि आगे भविष्य में स्त्री के मन में ऐसे विचार ना आये


अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

mamta ने कहा…

कविता अच्छी और सच्ची है ।
पर समय बदल रहा है ।

डॉ .अनुराग ने कहा…

आप जैसो ने ही वक़्त को बदलना है .....ये पीड़ा अब पोसिटिव कामो में परिवर्तित होनी चाहिए

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत मार्मिक रचना.............पर समय बदल रहा है, अब लड़की होना गुनाह न होगा

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