संस्कारो का,
गुरुवार, 29 जनवरी 2009
लड़की
संस्कारो का,
रविवार, 18 जनवरी 2009
अनसुलझे सवाल
फेहरिस्त में है इस बार
कुछ ऐसे सवाल
जिनका कोई जवाब नही है
धुंध हटी है इस तरह कि
परदा हटा है आँखों से और .......................................अब कोई ख्वाब नही है
यकीनन , अरमानो के आशियाने सजाने का शोंक अब भी है हमें
लेकीन .....................................इन्त्कामन
इस शोंक को शिकस्त देकर
अपनी शक्सियत पर इतराते भी हम ही है
करते है बातें बहारों की
सुनते है किस्से जन्नत के
लेकिन ...................................मन्नत में इन्हे मांग ले कैसे ????????
खुशियों के इस क़र्ज़ से डरते भी हम ही है
पा न सके उसे तो हासिल करने की सोची
मिल न सका वो तो मर जाने की सोची
लेकिन न जाने खुदा की खलिश है
या है मेरी किस्मत का कमाल
उसे भूलने कि कोशिश में
हर पल याद करके !!!!!!!!!!!!!!!
जिए जातें भी हम ही है !!!!!!!!.....................................................
बुधवार, 14 जनवरी 2009
हकीकत -ऐ -अफसाना
हकीकत में तुम मिल न सके मुझे
इसलिए ख्वाबों में तुमसे मुलाकात करती हूँ
तुम देते नही मेरी किसी बात का जवाब
इसलिए ख़ुद से ही सवालात करती हूँ
न जाने क्यो भूल नही पाती हूँ
वो वजह भी नही मालूम जिसकी
वजह से शामो-सेहर याद करती हूँ
तुम बसंती हवा की तरह आए
और पतझड़ दिखा कर चले गए
लेकिन मैं अब भी झूठी उम्मीद बांधे
सावन का इंतजार करती हूँ
तुमने तीन शब्दों में कर दिया
अपने प्यार का इजहार
मेरे पास तो शब्दों का अथाह सागर है
फिर मैं कैसे बताऊँ की कितना प्यार करती हूँ
मंगलवार, 6 जनवरी 2009
उम्मीद
फैलता ही जाता है
बिना किसी वजूद
के बावजूद
विरह में मिलन
की आस
कलह में शान्ति
का प्रयास
बार बार हारकर भी
जीतने का प्रयास
उम्मीद का आँचल
ओद्दे ही तो
बढता जा रहा है
हर रहगुज़ार
एक अनजानी
मंजिल की तरफ़
चाहता भी वो
ख़ुद ही को है
और खफा
रहता है ख़ुद ही से
अपनी ही उम्मीदों का
बोझ लादे है वो
कोई एक khwaeshein नही है उसकी
सपनो का पूरा संसार है
जिस पर निगाह saadhe है वो
बचपन की वो नटखट शरारते
और जवानी का वो लड़कपन
साथ होकर भी कब साथ छुट गया
उम्मीद की aandhi में
उमर का वो कच्चा घर
न जाने कब टूट गया
वो उम्मीद थी बहुत नाम कमाने की
जमाने से आगे निकल जाने की
उस उम्मीद को पाने में
इतना आगे निकल गया है
हर शख्स की
अब उम्मीद नही
पलों को फिर से पाने की
कमजोरी
उस दिन हैंड ड्रायर से हाथ सुखाते हुए मैंने सोचा काश आंसुओं को सुखाने के लिए भी ऐसा कोई ड्रायर होता . . फिर मुझे याद आया आंसुओं का स...
-
1. तुम्हारे साथ रहकर तुम्हारे साथ रहकर अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है कि दिशाएं पास आ गयी हैं, हर रास्ता छोटा हो गया है, दुनिया सिमट...
-
सपने कल्पना के सिवाय कुछ भी नही होते ...मगर कभी कभी सपनो से इंसान का वजूद जुड़ जाता है... अस्तित्व का आधार बन जाते है सपने ...जैसे सपनो के ब...
-
अपने व्यवहार और संस्कारों के ठीक उल्ट आज की पत्रकारिता से जुडऩे का नादान फैसला जब लिया था तब इस नादानी के पैमाने को मैं समझी नहीं थी। पढऩे, ...