गुरुवार, 29 जनवरी 2009

लड़की









संस्कारो का,

कैसा ?

बोझ है ये!!!!!!!!!!!!

जो मुझे कुछ कहने नही देता

कैसा ???????

फ़र्ज़ है ये!!!!

जिसे निभाने के लिये

सब कुछ सहने की

कसौटी पर मुझे खरा उतरना है

सही ग़लत जानते हुए भी

चुप रहकर पुराणी कुरीतियों पर चलना है

मेरे ही अस्तित्व पर मेरा कोई अधिकार नही !!!!!!!!

लेकिन क्यों ??????????

ये प्रश्न पूछने की भी मैं हकदार नही

ये कैसी जंग है जिंदगी में

जिसमे मेरी हार पहले ही तय कर दी गई है

जीतने की जैसे कोई लकीर ही ना हो हथेली में

मेरी पहचान के

माँ,बेटी,बहु,पत्नी और बहिन जैसे कई नाम है

लेकिन एक शब्द judda है इन सब नामो से

जिसकी वजह से मेरा होना ही

किसी पाप की पहचान है ------------लड़की

रविवार, 18 जनवरी 2009

अनसुलझे सवाल

फेहरिस्त में है इस बार

कुछ ऐसे सवाल

जिनका कोई जवाब नही है

धुंध हटी है इस तरह कि

परदा हटा है आँखों से और .......................................अब कोई ख्वाब नही है

यकीनन , अरमानो के आशियाने सजाने का शोंक अब भी है हमें

लेकीन .....................................इन्त्कामन

इस शोंक को शिकस्त देकर

अपनी शक्सियत पर इतराते भी हम ही है

करते है बातें बहारों की

सुनते है किस्से जन्नत के

लेकिन ...................................मन्नत में इन्हे मांग ले कैसे ????????

खुशियों के इस क़र्ज़ से डरते भी हम ही है

पा न सके उसे तो हासिल करने की सोची

मिल न सका वो तो मर जाने की सोची

लेकिन न जाने खुदा की खलिश है

या है मेरी किस्मत का कमाल

उसे भूलने कि कोशिश में

हर पल याद करके !!!!!!!!!!!!!!!

जिए जातें भी हम ही है !!!!!!!!.....................................................

बुधवार, 14 जनवरी 2009

हकीकत -ऐ -अफसाना

हकीकत में तुम मिल न सके मुझे

इसलिए ख्वाबों में तुमसे मुलाकात करती हूँ

तुम देते नही मेरी किसी बात का जवाब

इसलिए ख़ुद से ही सवालात करती हूँ

न जाने क्यो भूल नही पाती हूँ

वो वजह भी नही मालूम जिसकी

वजह से शामो-सेहर याद करती हूँ

तुम बसंती हवा की तरह आए

और पतझड़ दिखा कर चले गए

लेकिन मैं अब भी झूठी उम्मीद बांधे

सावन का इंतजार करती हूँ

तुमने तीन शब्दों में कर दिया

अपने प्यार का इजहार

मेरे पास तो शब्दों का अथाह सागर है

फिर मैं कैसे बताऊँ की कितना प्यार करती हूँ

मंगलवार, 6 जनवरी 2009

उम्मीद

उम्मीद का आँचल
फैलता ही जाता है
बिना किसी वजूद
के बावजूद
विरह में मिलन
की आस
कलह में शान्ति
का प्रयास
बार बार हारकर भी
जीतने का प्रयास
उम्मीद का आँचल
ओद्दे ही तो
बढता जा रहा है
हर रहगुज़ार
एक अनजानी
मंजिल की तरफ़
चाहता भी वो
ख़ुद ही को है
और खफा
रहता है ख़ुद ही से
अपनी ही उम्मीदों का
बोझ लादे है वो
कोई एक khwaeshein नही है उसकी
सपनो का पूरा संसार है
जिस पर निगाह saadhe है वो
बचपन की वो नटखट शरारते
और जवानी का वो लड़कपन
साथ होकर भी कब साथ छुट गया
उम्मीद की aandhi में
उमर का वो कच्चा घर
न जाने कब टूट गया
वो उम्मीद थी बहुत नाम कमाने की
जमाने से आगे निकल जाने की
उस उम्मीद को पाने में
इतना आगे निकल गया है
हर शख्स की
अब उम्मीद नही
पलों को फिर से पाने की

कमजोरी

उस दिन हैंड ड्रायर से हाथ सुखाते हुए मैंने सोचा काश आंसुओं को सुखाने के लिए भी ऐसा कोई ड्रायर होता . . फिर मुझे याद आया आंसुओं का स...