दिल खुलकर प्यार भी कर लेता है
और नफरत भी
मगर दिल को खोले जा सकने का कोई इंतजाम नहीं है
कोई तो दरवाजा, खिड़की या ढक्कन ही होता
जिसे खोलकर दिल में दाखिल होते और
एक झाड़ू में बुहार देते सारे कड़वे जज्बात और
नासूर सी बनती जा रही यादें
और तुम्हारे नाम पर भी मिट्टी डालकर एक पौधा उगा सकते तो
कितना अच्छा होता।
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