जिस पर बार-बार गणित के सवालों का अभ्हयास किया जाता था।
पहले मासिक परीक्षा, फिर छमाही, फिर वार्षिक परीक्षा
हर परीक्षा से पहले कितनी ही कॉपियां भर जाया करती थीं
अभ्यास करते-करते।
अभ्यास करते-करते।
फिर एक दिन सारा अभ्यास रद्दी में चला जाता था।
फिर एक दिन अभ्यास का असली नतीजा सामने आता था।
फिर एक दिन अभ्यास का असली नतीजा सामने आता था।
प्यार को उस नतीजे की तरह ही होना चाहिए था।
जो बार-बार अभ्यास के बाद सामने आता है।
जो बार-बार अभ्यास के बाद सामने आता है।
मगर प्यार गणित के सवालों की तरह सिर्फ पेचीदा ही रहा
प्यार के गणित को बार-बार अभ्यास करके हल करने का मौका नहीं मिला।
प्यार के गणित को बार-बार अभ्यास करके हल करने का मौका नहीं मिला।
एक भी कॉपी पूरी नहीं भर पाई।
जितने भी पन्ने भरे, सब पर काटे का निशान लगाना पड़ा।
सारे सवाल गलत हल हो गए थे।
अभ्यास करने का मौका नहीं दिया गया।
समय पूरा हो चुका था।
उत्तर पुस्तिका छीन ली गई।
नतीजा क्या होता...।
1 टिप्पणी:
बहुत खूब ... नए बिम्ब की साथ प्यार को समझने का प्रयास ...
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