गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

तुझे ल‌िखकर, पढ़ना


तुझे पढ़कर
लिखना चाहिए था।
तुझे लिखकर
पढ़ना मुश्किल पड़ रहा है अब।


तुझे मेरी आंखों में देखना चाहिए था
एक दफा
मेरे होंठों पर ठहर जान ा  तेरा
खल रहा है अब


न किए होते तूने मुझसे वादे अगर
मैं शिकायत भी न करती
तेरा वादों से पलट जाना
अखर रहा है अब


ना ना ना करते भी
मंजूर किया है मैंने रब का हर सितम
मगर तेरे आगे अपना बिखर जाना
मुझे कसक रहा है अब

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