दुख
तुम एक घना जंगल हो कविताओं का।
आंसू
मैं चाहती हूं कि तुम मेरे जेहन में जाकर कहीं छिप जाओ
और भीतर से इतना गिला कर दो मुझे कि कोई गम
सोख न पाए।
शिकार
मैं नहीं करना चाहती तुमसे प्यारमुझे डर है कि तुम मेरी नफरतों का शिकार हो जाओगे।
धोखा
हम थक चुके हैं
प्यार कर-कर के
और उसके बाद
दिल में नफरत भर-भर के
आओ, एक-दूसरे को धोखा देने के लिए
हम एक-दूसरे के करीब आएं अब।
मैं
पतंग भी मैं
डोर भी मेरे हाथ में
उड़ान भी मेरी
आकाश भी मेरा
और अब कट-कट कर
गिर भी रही हूं मैं।
तुम एक घना जंगल हो कविताओं का।
आंसू
मैं चाहती हूं कि तुम मेरे जेहन में जाकर कहीं छिप जाओ
और भीतर से इतना गिला कर दो मुझे कि कोई गम
सोख न पाए।
शिकार
मैं नहीं करना चाहती तुमसे प्यारमुझे डर है कि तुम मेरी नफरतों का शिकार हो जाओगे।
धोखा
हम थक चुके हैं
प्यार कर-कर के
और उसके बाद
दिल में नफरत भर-भर के
आओ, एक-दूसरे को धोखा देने के लिए
हम एक-दूसरे के करीब आएं अब।
मैं
पतंग भी मैं
डोर भी मेरे हाथ में
उड़ान भी मेरी
आकाश भी मेरा
और अब कट-कट कर
गिर भी रही हूं मैं।