मंगलवार, 29 नवंबर 2011

तेरे बारे में



दुनिया की इस भीड़ में
जब मैं कहीं खो सी जाती हूँ
सिर्फ तुम्हारे ख्याल भर से
खुद ही खुद को
ख़ास जताती हूँ
...
देर शाम
दफ्तर से घर लौटते वक़्त
जब कुछ मनचले
मैली सी  नजरों से
झांकते है मेरे भीतर
तुम्हारे अहसास भर से
मैं खुद को ताकत दे पाती हूँ
...
जब कभी शून्य में
समा जाती हैं मेरी सारी सोच
और मैं तनहा हो जाती हूँ
तब खुद को जगाने के लिए
तुम्हारे कुछ ख्वाब सजाती हूँ
...
दिमाग, दिल और देह तक
जब बिक रही है हर चीज
और खरीददार खड़े हैं बाजार में
मैं खुद को
तुम्हारी अमानत समझकर बचाती हूँ
...
घर के बड़े कहते हैं बड़ी सयानी हूँ मैं
...
दोस्त कहते है दीवानी हूँ मैं
...
मुझे लगता है कुछ नहीं हूँ
तुम्हारी हिमानी हूँ मैं

8 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

मैं खुद को
तुम्हारी अमानत समझकर बचाती हूँ
घर के बड़े कहते हैं बड़ी सयानी हूँ मैं

....आपने सही कहा है इस कविता में.

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सच कहा है..बहुत मर्मस्पर्शी और सुन्दर रचना..

विभूति" ने कहा…

बेहतरीन भाव अभिवयक्ति.....

सागर ने कहा…

khubsurat bhaavo ki rachna....

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत खूब!

सादर

Prataham Shrivastava ने कहा…

humm badiya nahi kah sakta ,kya baat hai nahi kah sakta , kyoki in shabdo se khasa paresaan rahna pada beetw waqt me ha par itna to kah hi sakta hu ki padhkar laga jaise pedal ghaziyabad ghoom raha hu

बेनामी ने कहा…

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