सोमवार, 19 सितंबर 2011

मन शैतान हो गया है


मन करता है नास्तिक हो जाऊं
मन करता है किसी को नाराज कर दूँ
और कभी न मनाऊँ
किसी को दूँ बेइंतहा मोहब्बत
और फिर मैं भी बेवफाई कर पाऊं
मन करता है अहसासों का
अंश अंश निकालकर
किसी कूड़ेदान में फेंक आऊं
मन  करता है किसी पहाड़ी जगह नही
पकिस्तान में जाकर छुट्टियाँ बिताऊं
मन करता है तोड़ दूँ
सारे परहेज और रजकर खाऊं
मांगूं नही
छीन लूँ
अपना हर हक़ - अधिकार
मोड़ दूँ तोड़ दूँ मरोड़ दूँ
उन सारे गृह नक्षत्रों को जो मेरे
खिलाफ
हो गए हैं
काट दूँ सारी किस्मत की रेखाएं
हाथ से
और खुद सपनों की एक तस्वीर हथेली पर सजाऊं
अब मन करता है खुद  पर करूँ एक अहसान
भूल जाऊं
सबको
और याद रखूं बस अपना नाम
ये मन अब शायद चंचल नही रहा
शैतान हो गया है

8 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

मन को इतना भी शैतान न होने दीजिये। :)

सादर

संजय भास्‍कर ने कहा…

उम्दा सोच
भावमय करते शब्‍दों के साथ गजब का लेखन ...आभार ।

विभूति" ने कहा…

भावपूर्ण अभिवयक्ति....

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

jab ye soch aa hi gayi hai to baki k bandhan apne aap raasta de denge.

keep it up.

बेनामी ने कहा…

I think you really want to break these shackles that are holding you back. Hope you get, easy way out somehow.
and make your MANN SHAANT ;)

सागर ने कहा…

sundar...

sanu shukla ने कहा…

shayad isi liye kaha gaya hai ki..man bavara hota hai ..:-))
sundar abhivyakti ..!!

Prataham Shrivastava ने कहा…

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