ऐसा सबका ही अनुभव होता होगा या फिर कुछ लोगों का तो होता ही है कि हमारा पहला क्रश हमारे कोई अध्यापक हो
इस अध्यापक दिवस पर इस बात को मैं भी स्वीकार करना चाहती हूँ कि मेरे साथ भी ऐसा हुआ.. एक नही दो बार जब मुझे अपने टीचर पर ही प्यार आ गया ...बेशक उस वक़्त भी नही पता था और आज भी नही कि प्यार के असल मायने क्या हैं ..उस प्यार में भी एक चाहत थी, इज्जत थी, जज्बा था ...और आज अगर किसी से होता है तो वो भी एक जज्बा है, चाहत है और थोड़ी सी जरुरत है
खैर आज मुद्दा प्यार नही हमारे अध्यापक है ..जिनका हम माने या न माने हमारे जीवन में अहम् योगदान है ..कभी वो हमें अछे लगे तो हमने मन लगाकर सिखा, कभी उन्होंने हमें अच्छी शिक्षा दी तो हम अच्छे से आगे बढ़ पाए, उनकी सख्ती, उनकी नरमी, उनका अंदाज, उनकी बात
कब कहाँ कैसे जिंदगी की दिशासूचक रही है , ये अब धीरे धीरे पता चल रहा है...
लेकिन हैरानी होती है ये देखकर कि हमें स्कूल छोड़े अभी जमाना नही बीता है और स्कूलों के हालातों में एक ज़माने का बदलाव आने लगा है
अब यहाँ बैर बदलाव से नही उस बात से है जिसमे भवरे को फूल से दूर रखने का, चकोर को चाँद के पास भी न फटकने जैसे बदलाव किये जा रहे है
यक़ीनन परिवर्तन प्रकर्ति का नियम है और ये मानने से भी कोई गुरेज नही कि हमें ज़माने के साथ चलना है ...लेकिन इतनी रौशनी भी ठीक नही कि सब अंधे हो जाएँ ...
ऐसे समय में शिक्षा और शिक्षकों के स्तर और शैली में कुछ अजीबोगरीब बदलाव होने लगे हैं ....
स्कूलों में टीचरों का बन ठन कर आना, ज्यादा से ज्यादा अंग्रेजी बोलना उनकी योग्यता का मापदंड हो गया है
जबकि हमने सीखा था और देखा था कि अध्यापक जितने सादगी में रहे उतना ही अच्छा है ताकि बच्चों का ध्यान उनके कपड़ों और शकल पर नही उनके पढ़ाने पर जाये ...और हां क्रश कि जो बात मैं कह रही थी उसमे उन टीचरों का अच्छा देखने से ज्यादा ये प्रभावित करता था कि वो कैसे हमारे दोस्त जैसे बनकर बेहतरीन तरीके से पढ़ा रहे है
अच्छा नही लगता ये देखकर कि वो अध्यापक जो हमारे आदर्श रहे आज अपना अस्तित्व बनाने के लिए जूझ रहे है.सिर्फ इसलिए कि वो कुछ दिखावा पसंद नही करते ...कि वो हिंदी को मरना नही चाहते अंग्रेजी को जिलाने कि कीमत पर
इधर लुधियाना या कहूँ के पंजाब के कई जिलों में शिक्षक दिवस को काला दिवस के रूप में मनाया गया. कारण था सालों से लटकी पड़ी उनकी मांगे
तय वेतन न दिया जाना , रेगुलर होने कि योग्यता और रेगुलर कर दिए जाने के वायदे के बावजूद कोई कवायद न होना
...
कैसे ख़ुशी और शुभकामनाओं के साथ इस शिक्षक दिवस को मनाया जा सकता है जब एक तरफ शिक्षा अपने आयाम खोज रही है और शिक्षक अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रहे है ??
;;;
फिर भी किसी अध्यापक कि असली दौलत उसके छात्र होते हैं
शिक्षक बनकर काम करना रोजी रोटी का मुद्ददा है और
इस ज़माने में रोजी रोटी इतनी आसान नही
इस अध्यापक दिवस पर इस बात को मैं भी स्वीकार करना चाहती हूँ कि मेरे साथ भी ऐसा हुआ.. एक नही दो बार जब मुझे अपने टीचर पर ही प्यार आ गया ...बेशक उस वक़्त भी नही पता था और आज भी नही कि प्यार के असल मायने क्या हैं ..उस प्यार में भी एक चाहत थी, इज्जत थी, जज्बा था ...और आज अगर किसी से होता है तो वो भी एक जज्बा है, चाहत है और थोड़ी सी जरुरत है
खैर आज मुद्दा प्यार नही हमारे अध्यापक है ..जिनका हम माने या न माने हमारे जीवन में अहम् योगदान है ..कभी वो हमें अछे लगे तो हमने मन लगाकर सिखा, कभी उन्होंने हमें अच्छी शिक्षा दी तो हम अच्छे से आगे बढ़ पाए, उनकी सख्ती, उनकी नरमी, उनका अंदाज, उनकी बात
कब कहाँ कैसे जिंदगी की दिशासूचक रही है , ये अब धीरे धीरे पता चल रहा है...
लेकिन हैरानी होती है ये देखकर कि हमें स्कूल छोड़े अभी जमाना नही बीता है और स्कूलों के हालातों में एक ज़माने का बदलाव आने लगा है
अब यहाँ बैर बदलाव से नही उस बात से है जिसमे भवरे को फूल से दूर रखने का, चकोर को चाँद के पास भी न फटकने जैसे बदलाव किये जा रहे है
यक़ीनन परिवर्तन प्रकर्ति का नियम है और ये मानने से भी कोई गुरेज नही कि हमें ज़माने के साथ चलना है ...लेकिन इतनी रौशनी भी ठीक नही कि सब अंधे हो जाएँ ...
ऐसे समय में शिक्षा और शिक्षकों के स्तर और शैली में कुछ अजीबोगरीब बदलाव होने लगे हैं ....
स्कूलों में टीचरों का बन ठन कर आना, ज्यादा से ज्यादा अंग्रेजी बोलना उनकी योग्यता का मापदंड हो गया है
जबकि हमने सीखा था और देखा था कि अध्यापक जितने सादगी में रहे उतना ही अच्छा है ताकि बच्चों का ध्यान उनके कपड़ों और शकल पर नही उनके पढ़ाने पर जाये ...और हां क्रश कि जो बात मैं कह रही थी उसमे उन टीचरों का अच्छा देखने से ज्यादा ये प्रभावित करता था कि वो कैसे हमारे दोस्त जैसे बनकर बेहतरीन तरीके से पढ़ा रहे है
अच्छा नही लगता ये देखकर कि वो अध्यापक जो हमारे आदर्श रहे आज अपना अस्तित्व बनाने के लिए जूझ रहे है.सिर्फ इसलिए कि वो कुछ दिखावा पसंद नही करते ...कि वो हिंदी को मरना नही चाहते अंग्रेजी को जिलाने कि कीमत पर
इधर लुधियाना या कहूँ के पंजाब के कई जिलों में शिक्षक दिवस को काला दिवस के रूप में मनाया गया. कारण था सालों से लटकी पड़ी उनकी मांगे
तय वेतन न दिया जाना , रेगुलर होने कि योग्यता और रेगुलर कर दिए जाने के वायदे के बावजूद कोई कवायद न होना
...
कैसे ख़ुशी और शुभकामनाओं के साथ इस शिक्षक दिवस को मनाया जा सकता है जब एक तरफ शिक्षा अपने आयाम खोज रही है और शिक्षक अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रहे है ??
;;;
फिर भी किसी अध्यापक कि असली दौलत उसके छात्र होते हैं
शिक्षक बनकर काम करना रोजी रोटी का मुद्ददा है और
इस ज़माने में रोजी रोटी इतनी आसान नही
मेरे उन अध्यापकों के लिए जिन्होंने मेरा मार्गदर्शन किया
कहते है गुरु ज्ञान देते है
ज्ञान का वरदान देते है
पर मैंने तो देखा परखा और जाना
साक्षात् गुरु आपको मन
आदर्श स्वरुप हैं मेरे जीवन का आप
करती हूँ मैं आपको सादर प्रणाम
कहते है गुरु ज्ञान देते है
ज्ञान का वरदान देते है
पर मैंने तो देखा परखा और जाना
साक्षात् गुरु आपको मन
आदर्श स्वरुप हैं मेरे जीवन का आप
करती हूँ मैं आपको सादर प्रणाम
4 टिप्पणियां:
सही बात कही आपने।
सादर
इधर लुधियाना या कहूँ के पंजाब के कई जिलों में शिक्षक दिवस को कला दिवस के रूप में मनाया गया
कला की जगह काला कर दें ...
अच्छी प्रस्तुति ..
kla ki jagah kala kar diya hai mam
शिक्षक दिवस पर
सही बात कही आपने।
बहुत देर से पहुँच पाया ......माफी चाहता हूँ..
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