मन करता है नास्तिक हो जाऊं
मन करता है किसी को नाराज कर दूँ
और कभी न मनाऊँ
किसी को दूँ बेइंतहा मोहब्बत
और फिर मैं भी बेवफाई कर पाऊं
मन करता है अहसासों का
अंश अंश निकालकर
किसी कूड़ेदान में फेंक आऊं
मन करता है किसी पहाड़ी जगह नही
पकिस्तान में जाकर छुट्टियाँ बिताऊं
मन करता है तोड़ दूँ
सारे परहेज और रजकर खाऊं
मांगूं नही
छीन लूँ
अपना हर हक़ - अधिकार
मोड़ दूँ तोड़ दूँ मरोड़ दूँ
उन सारे गृह नक्षत्रों को जो मेरे
खिलाफ
हो गए हैं
काट दूँ सारी किस्मत की रेखाएं
हाथ से
और खुद सपनों की एक तस्वीर हथेली पर सजाऊं
अब मन करता है खुद पर करूँ एक अहसान
भूल जाऊं
सबको
और याद रखूं बस अपना नाम
ये मन अब शायद चंचल नही रहा
शैतान हो गया है