बुधवार, 17 अगस्त 2011

एक उदास मन की टूटी फूटी बतियाँ

बहुत बड़ा बनने और बहुत कुछ पाने के ख्वाबों के बीच कुछ छोटी छोटी चीजें कितनी अहम् हो जाती है ...इतनी अहम् की ये चीजे ही हमारा अहम हो जाती हैं..
शायद जिंदगी कभी हमारी तरह नही होती
हमें हमेशा जिंदगी के जैसे होना होता है

जिसे पाना चाहते हैं जब वो मिल जाता है तो

सब कुछ इतना सूना क्यों हो जाता है

उसे खो सकने का तो कभी ख्याल भी

नही किया था
आज वो ढूंढे से भी नही मिल रहा

इतनी बेसिर पैर हो रही है

मंजिल कि
कोई सिरा दिख ही नही रहा
नही तो आगे बढूँ और थाम लूँ , जकड लूँ

आसमान में छाए बादलों को देखा तो लगा
कि जैसे उड़ रहें हैं ये
इनका तय है न एक मौसम उड़ने का
एक बरसने का
एक तरसने का
एक तरसने का
हम तो
फिर वही बात
अपनी मर्जी से कहाँ
अपने सफ़र के हम हैं
रूख हवाओं का जिधर है
उधर के हम है
लेकिन क्यों हवाएं हमारे रुख के साथ नहीं हैं
क्यों इस कायनात कि सारी साजिशे हमारे खिलाफ रहीं हैं
क्यों '

4 टिप्‍पणियां:

Dev ने कहा…

लाजवाब .....मन के भावों को बहुत ख़ूबसूरती से शब्दों में पिरोया है .....बहुत खूब |

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

उदासी के भाव खूबसूरती से उकेरे हैं ...वक्त आएगा जब हवाओं का रुख अपने हिसाब से पलट सको ..

vandana gupta ने कहा…

इतना उदास ना हों वक्त का रुख मोडना पडता है।

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

har baat me ek good hota he ji...mayuus hone ki jarurat nahi is me b kuchh acchha hi hoga.

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