मंगलवार, 24 मई 2011

पगडंडी


 झीलों के किसी शहर में
तुम्हारे साथ रहना
समुंदर के किनारे
नंगे पाँव हाथों में हाथ डाले घंटों टहलना
पहाड़ों की हसीं वादियों में
जोर से तुम्हारा नाम पुकारना
और कभी शाम ढले
फूलों के एक बगीचें में तुम्हारे साथ
बैठकर
घर लौटते पक्षियों को देखना
तुम्हारे लिए तुम्हारे साथ
प्रक्रति के इस हर एक रूप को साक्षी मानकर
मैं चाहती हूँ
तुम्हे प्रेम करना
पर क्या तुम...
क्या तुम चाहोगे ?
मेरे साथ इन बहारों के बीच
अचानक आ गए
पतझड़ में
किसी  पगडंडी पर चलना


7 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

कोमल अहसासों से परिपूर्ण एक बहुत ही भावभीनी रचना जो मन को गहराई तक छू गयी ! बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनायें !

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों....बेहतरीन भाव......खूबसूरत कविता...

संजय भास्‍कर ने कहा…

कई दिनों व्यस्त होने के कारण  ब्लॉग पर नहीं आ सका

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

क्या तुम चाहोगे ?
मेरे साथ इन बहारों के बीच
अचानक आ गए
पतझड़ में
किसी पगडण्डी पर चलना

अति संवेदनशील प्रश्न ...अच्छी प्रस्तुति

vandana gupta ने कहा…

कोमल भावो की सुन्दर प्रस्तुति।

Anuj Joshi ने कहा…

jo insaan baharoon mai apka sath deta hai us par vishvash jarur vo patjhar me bhi apka sath nai chorega. shabdon kai sath jo pravog kiya hai ov ati uttam hai

Prataham Shrivastava ने कहा…

कोन नहीं चाहेगा ऐसी हसीं वादियों में कुछ हसीं शब्दों में खोना

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