शनिवार, 7 मई 2011

माँ

माँ
सोच में हूँ कि कैसे अलंकृत करूँ
इस व्यंजन को जिसका स्वर
मेरे पूरे जीवन का आधार है
घनी धूप  में पेड़ की छाया कहूँ
या अंधेरों में रौशनी का एहसास
अतुल्निये हो तुम माँ .....................
फ़िर किस से तुलना करूँ तुम्हारी
कौन है इस जग में तुम जितना ख़ास
असमंजस में पड़ जाती हूँ जब देखती हूँ
हर माँ में वही  जज्बा
वही  जज्बात
संघर्ष , समर्पण और सहनशक्ति की वो अद्भुत मिसाल
जीवन के हर मुश्किल दौर में उसकी दुआओं का साथ
देने को उसे क्या दूँ
उसकी ममता जितना अनमोल
कुछ नही है मेरे पास
हे इश्वर !!!!!!!!!!!!!हे अल्लाह
कबूल करना इतनी दरख्वास्त
जिस आँचल  के सायें में
पली बड़ी हूँ, उस झोली में खुशियाँ भर सकूँ
कर सकूँ कुछ तो रहमत तेरी
न कर सकूँ तो माँ को कभी कोई दुःख भी न
दूँ
न कर सकूँ तो कभी उसे मैं कोई दुःख न दूँ

3 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

खूबसूरत एहसास

nilesh mathur ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति!

Chandan Swapnil ने कहा…

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