रविवार, 6 मार्च 2011

उफ़! ये कसक





नींद खो गई है
भूख सो गई है
सिर्फ प्यास लग रही है
उफ़ ! ये इश्क

कांटे ही थे वो चमकीले कागज में
लिपटे हुए

हम माना किये गुलाब  गिर गए होंगे रास्ते पर
उफ़ ! ये एतबार

किसी ताज को भी नही दी तवज्जो कभी

मगर उनके इक इशारे पर 

डाल दिए सब हथियार
उफ़ ! ये जज्बात

सूखते मुंह भी पानी नही माँगा किसी से

और उनसे जाकर कह दिया
हाँ तुमसे करते हैं प्यार
उफ़! ये इजहार

हरे भरे सपनो का

गुलाबी महल बनाकर
वो आये अंखियों में
और फिर खुद ही कर दिए सुराग
उफ़! ये वारदात

सारी कायनात आज शामिल है मेरी

रूह के साथ
जब कि वो हो रहे है
अपनी एक नई आरजू से दो चार
उफ़! ये संस्कार



8 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सच ...उफ़ ये इश्क , ऐतबार ,जज़्बात ...वाकयी ज़बरदस्त कसक है

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 08-03 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

http://charchamanch.uchcharan.com/

धीरेन्द्र सिंह ने कहा…

भावनाओं के एक बड़े कैनवास पर उफ्, यह अभिव्यक्तिपूर्ण कविता...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

उफ़ ये कविता इतनी
लाजवाब ...

बहुत खूब ... क्या जज़्बात समेटे हैं रचना में ..

vandana gupta ने कहा…

उफ़ ये अन्दाज़-ए-बयाँ
अब और क्या कहें…………बेहतरीन कसक है।

Kailash Sharma ने कहा…

उफ़!ये कविता...बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी कविता| धन्यवाद|

संजय भास्‍कर ने कहा…

बेहतरीन बेहतरीन बेहतरीन बेहतरीन बेहतरीन

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