अच्छी फिल्में सिर्फ फिल्म के लिहाज से ही अच्छी होती हैं जिंदगी के लिहाज से शायद ....
परदे पर हम अपनी दमित इच्छाओ की पूर्ति होते देख रोमांचित और उत्साहित महसूस करते हैं और फिल्म हिट हो जाती है क्योंकि असल जिंदगी में सात खून माफ़ नही होते...और सात बार शादी करने का जोखिम उठाना .....????
हमारा आज, अभी और इस वक्त का सच ये है कि पत्नियाँ एक पति के साथ सात जन्मों के रिश्ते में बंधने के बाद शायद ७००० बार मरती हैं
बहुत सारे पतियों को लग सकता है कि ये एक तरफ़ा सच है और उनके पक्ष को दरकिनार कर दिया गया है ..तो हाँ...कर दिया है ..क्योंकि उनके पक्ष का प्रतिशत बहुत कम है..खैर इसे मेरी खुन्नस न समझिएगा सिर्फ एक बात लिखी है जो देखी और महसूस की अभी तमाम दुनिया देखना बाकी है और फिर हो सकता है कि विचार भी बदल जाये...
लेकिन विशाल भारद्वाज ने हमारे संकुचित समाज के सामने आंखे फाड़ कर, कान खड़े कर और कुर्सी से चिपक कर देखी जाने वाली एक फिल्म का प्रसार किया है ....जिस फिल्म के ख़त्म होने के बाद अनजाने ही लोग standing oveation देते नजर आये....क्योंकि सात खून हो जाने के बाद शायद ये देखना किसी को गवारा न था कि प्यारे से शुगर( विवान शाह) का भी खून हो गया है ..साहेब (प्रियंका चोपरा) का वो शुगर जिसका एक बच्चा और बेहद प्यार करने वाली एक पत्नी है इसलिए हर बॉलीवुड फिल्म की तरह इस फिल्म की भी एंडिंग साइड हीरो और साइड हेरोइन के मिलन के साथ हैप्पी हो गई. लेकिन कुछ निराशा, अवसाद, अहसास और सवाल शादी नाम के रिश्ते से जुड़ते भी नजर आये जो कि हमारे देश में सिर्फ एक रिश्ता नही बल्कि भरा पूरा उत्सव है..
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एक तरफ प्यार की तलाश में गुनाह करती औरत( सूजैना, प्रियंका चोपरा) ..और असफल होती सात शादियाँ और दूसरी तरफ बीवी बच्चे के साथ खुशहाल जिंदगी जीने वाला एक छोटा सा परिवार ( विवान और कोंकना सेन शर्मा)
,क्या लगता है ????
शादी नाम की संस्था सिर्फ शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए बनाई गई एक औपचारिक परम्परा है या एक शादी के साथ भी हमें तन मन और ...धन तीनो का सुख मिल सकता है. फिल्म सिर्फ प्यार की तलाश में धोखे खा रही एक औरत की कहानी है या ये सच दिखाने वाला एक आईना भी कि हर औरत एक बार अपने पति को मारने के बारे में जरूर सोचती है.
अजीब तरह से बदल रही है यार ये दुनिया
प्यार करने की भी एक निश्चित स्ट्रेटजी हैं यहाँ
और शादी इस रिश्ते पर तो भयंकर रूप से प्रश्नचिन्ह लग रहे है
देखना ये है कि शेष क्या बचेगा
और सिनेमा की दुनिया में सात खून माफ़ होने के बाद असल जिंदगी का आठवां खून क्या माफ़ हो पायेगा
6 टिप्पणियां:
hhmmmm accha likha hai
फेमिनिज्म ने जो सवाल सातवें दशक में खडे किए थे उन्हे आज तक जवाब की दरकार है। फिर उन्ही सवालों को नये सिरे से देखकर अच्छा लगा। बस एक बात जहां जहां औरत लिखा है वहां वहां इस पूरी पोस्ट में इंसान कर देने में कोई अनर्थ हो जाएगा क्या? आदमी और औरत हमारे समय की सच्चाइयां हैं इनसे आंख नहीं चुराई जा सकती, लेकिन असल मुद्दा उसी इंसान का है, जो मासूम धोखे का शिकार होता है। दोनों तरफ से।
खूबसूरत फिल्म पर शुरुआती टिप्पणी का शुक्रिया।
अपनी ही पोस्ट पर टिप्पड़ी कर रही हूँ किसी ने मजबूर कर दिया है
दरसल दफ्तर में फिल्म को लेकर बात हो रही थी मैं बता रही की थी की किस तरह प्रियंका चोपरा ने बेहतरीन अभिनय करते हुए सात शादियाँ की और हर बार उसे अपने पति का खून करने पर मजबूर होना पड़ा तभी एक जवाब मिला
उनने पंजाबी नाल वियाह किया हिक वी वारी
मैंने कहा नही
तो जवाब मिला
हिक वारी पंजाबी नाल व्याह कर लेंदी ते दूजे वियाह या खून कर्ण दी नोबत ही नही आंदी
ये बात फिल्म की टीम तक भी पहुंचे तो वधिया होवे
अपनी ही पोस्ट पर टिप्पड़ी कर रही हूँ किसी ने मजबूर कर दिया है
दरसल दफ्तर में फिल्म को लेकर बात हो रही थी मैं बता रही की थी की किस तरह प्रियंका चोपरा ने बेहतरीन अभिनय करते हुए सात शादियाँ की और हर बार उसे अपने पति का खून करने पर मजबूर होना पड़ा तभी एक जवाब मिला
उनने पंजाबी नाल वियाह किया हिक वी वारी
मैंने कहा नही
तो जवाब मिला
हिक वारी पंजाबी नाल व्याह कर लेंदी ते दूजे वियाह या खून कर्ण दी नोबत ही नही आंदी
ये बात फिल्म की टीम तक भी पहुंचे तो वधिया होवे
accha likha hai. maine film to nahi dekhi. aathvaa devikee ke santan kanss ka khoon kar degaa.
Shadi tabhi safal hoti hai jab pati patni dost ho jaate hain...sahi maayne me saathi...Apekshayein rakhna buri baat nahi par apekshaaon ke liye agni pariksha se baar baar guzarna ya guzaarna sarvatha anuchit hota hai...
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