लुधियाना में बैठकर दिल्ली की बात. बहुत नाइंसाफी है जनाब. हाँ है तो. लेकिन क्या करें कमबख्त दूरियों ने दिल में दिल्ली को और भी गहरे घुसा दिया है. चार दिन की छुट्टी के बाद लुधियाना लौटी हूँ तो दिल्ली में कई नए बने फ्लाई ओवर, पहले से कुछ ज्यादा फैशन परस्त हो गए लोगों और प्रेम के उन्माद में नियम तोड़ते( दरसल मेट्रो में अब महिलायों के लिए अलग से सीट अरक्षित कर दी गई है ऐसे में जो लोग जोड़े से मेट्रों में सफ़र करते है उनके लिए खासी परेशानी होती है जैसा की मुझे उस वक्त महसूस हुआ, मेट्रो कर्मचारी ने लड़के से वुमन कम्पार्टमेंट से जाने के लिए कहाँ तो वह उस कर्मचारी से ही झगड़ने लगा उसके साथ उसकी महिला मित्र ने अन्य महिला यात्रिओं के विरोध करने पर उनके साथ भी गलत तरह से बात की , मामला सिर्फ इतना था की वेह दोनों साथ खड़े होना चाहते थे और एक नियम उसमे बढा बन रहा था ) युवाओं के साथ पहले से कहीं ज्यादा जवां लगती दिल्ली कुछ भी सही लेकिन कुछ लिखने को मजबूर कर रही है. जैसे न जाने कितना कुछ समेटे है ये अपने गर्भ में. जैसे किसी देवता के वरदान से मिले खजाने में धन ख़त्म ही नही होता उसी तरह दिल्ली के बारे में लिखने के लिए इतना कुछ है कि उसमे कुछ नया लिखने की शर्त कोई मायने ही नही रखती. अहसास तो शख्स बदलने के साथ खुद ब खुद नए हो ही जाते है न . जैसे मेरा दिल्ली से नॉएडा जाने के लिए ३३ नंबर की बस पकड़ने और गंतव्य तक पहुँचने का अहसास आज भी मेरे चेहरे पर मुस्कान ला देता है नही मुस्कान नही बड़ी सी हंसी. अगर आप इस बस से परिचित है और ये सब पढ़ रहे है तो अब तक मुस्कराहट आप के होटों को भी छु कर गुजर चुकी होगी अगर नही जानते तो माजरा ये है कि इस बस में सीट तो दूर की बात है सांस लेने के लिए स्पेस मिलना भी मुश्किल होता है. अब शायद इस नंबर की बसों की संख्या बढा दी गई है तो कुछ सहूलियत हो लेकिन उस समय ३३ नंबर की बस में सफर करना और सुरक्षित लौटना जिंदगी की तमाम आपाधापियों के बीच जगह बना चुकी एक बड़ी चुनौती होतीं थी. मगर ये दिल्ली है और बड़े बड़े शहरों में ऐसी छोटी छोटी बातें होती रहती है. इस शहर में आना भी बड़ी बात है रहना भी बड़ी बात है और अपनी जगह बनाना भी बड़ी बात है. और हाँ इस शहर का होकर भी इसे छोड़ जाना और फिर लौटकर अपना अस्तित्व बसाना ये सिर्फ बात ही बड़ी नही है ये काम भी बहुत बड़ा है ........आखिर बड़ा शहर है और हम छोटे लोग है वक़्त से भी और कद से भी ...हा हा हा. और फिर बड़ा बनने की न सही लेकिन बड़ा होने की ख्वाइशें अभी बाकी है ....
शनिवार, 12 फ़रवरी 2011
पहले से ज्यादा जवां लगती है हर बार ये दिल्ली
लुधियाना में बैठकर दिल्ली की बात. बहुत नाइंसाफी है जनाब. हाँ है तो. लेकिन क्या करें कमबख्त दूरियों ने दिल में दिल्ली को और भी गहरे घुसा दिया है. चार दिन की छुट्टी के बाद लुधियाना लौटी हूँ तो दिल्ली में कई नए बने फ्लाई ओवर, पहले से कुछ ज्यादा फैशन परस्त हो गए लोगों और प्रेम के उन्माद में नियम तोड़ते( दरसल मेट्रो में अब महिलायों के लिए अलग से सीट अरक्षित कर दी गई है ऐसे में जो लोग जोड़े से मेट्रों में सफ़र करते है उनके लिए खासी परेशानी होती है जैसा की मुझे उस वक्त महसूस हुआ, मेट्रो कर्मचारी ने लड़के से वुमन कम्पार्टमेंट से जाने के लिए कहाँ तो वह उस कर्मचारी से ही झगड़ने लगा उसके साथ उसकी महिला मित्र ने अन्य महिला यात्रिओं के विरोध करने पर उनके साथ भी गलत तरह से बात की , मामला सिर्फ इतना था की वेह दोनों साथ खड़े होना चाहते थे और एक नियम उसमे बढा बन रहा था ) युवाओं के साथ पहले से कहीं ज्यादा जवां लगती दिल्ली कुछ भी सही लेकिन कुछ लिखने को मजबूर कर रही है. जैसे न जाने कितना कुछ समेटे है ये अपने गर्भ में. जैसे किसी देवता के वरदान से मिले खजाने में धन ख़त्म ही नही होता उसी तरह दिल्ली के बारे में लिखने के लिए इतना कुछ है कि उसमे कुछ नया लिखने की शर्त कोई मायने ही नही रखती. अहसास तो शख्स बदलने के साथ खुद ब खुद नए हो ही जाते है न . जैसे मेरा दिल्ली से नॉएडा जाने के लिए ३३ नंबर की बस पकड़ने और गंतव्य तक पहुँचने का अहसास आज भी मेरे चेहरे पर मुस्कान ला देता है नही मुस्कान नही बड़ी सी हंसी. अगर आप इस बस से परिचित है और ये सब पढ़ रहे है तो अब तक मुस्कराहट आप के होटों को भी छु कर गुजर चुकी होगी अगर नही जानते तो माजरा ये है कि इस बस में सीट तो दूर की बात है सांस लेने के लिए स्पेस मिलना भी मुश्किल होता है. अब शायद इस नंबर की बसों की संख्या बढा दी गई है तो कुछ सहूलियत हो लेकिन उस समय ३३ नंबर की बस में सफर करना और सुरक्षित लौटना जिंदगी की तमाम आपाधापियों के बीच जगह बना चुकी एक बड़ी चुनौती होतीं थी. मगर ये दिल्ली है और बड़े बड़े शहरों में ऐसी छोटी छोटी बातें होती रहती है. इस शहर में आना भी बड़ी बात है रहना भी बड़ी बात है और अपनी जगह बनाना भी बड़ी बात है. और हाँ इस शहर का होकर भी इसे छोड़ जाना और फिर लौटकर अपना अस्तित्व बसाना ये सिर्फ बात ही बड़ी नही है ये काम भी बहुत बड़ा है ........आखिर बड़ा शहर है और हम छोटे लोग है वक़्त से भी और कद से भी ...हा हा हा. और फिर बड़ा बनने की न सही लेकिन बड़ा होने की ख्वाइशें अभी बाकी है ....
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1 टिप्पणी:
दिल्ली एक खूबसूरत हसीना की तरह है.. किसी को भी इश्क हो जाए..
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