कितने दिन हो गए इस शहर में आये...आज भी हर शाम अलसाई सी है और हर सुबह ललचाई सी है. हालाँकि इस शहर की आबोहवा में खुद को तबसे ही शामिल कर लिया था जब दिल्ली से आ रही बस की खिड़की से मैंने वो बोर्ड देखा था. .. वेलकम टू लुधियाना सिटी . ये कोई टूरिस्ट स्पोट नही था न ही कोई हिल स्टेशन, ये मेरी जिंदगी का पहला destination है , जहाँ मैंने अपने सपनो की तरफ अपना पहला कदम रखा था. शहर को जाना.. देखा.. जहाँ तक देख सकती थी, फिर लिखा भी.. उन बातों को जो चुभी जिन्हें महसूस किया. लेकिन लगा और लगातार लग रहा है कि शहर ने मुझे नही अपनाया. एक अजीब सा अकेलापन है यहाँ. हालाँकि अकेलापन अजीब ही होता है लेकिन मैं ये कहूँगी कि ये अकेलापन अजीबोगरीब है. अजीब इसलिए कि अकेलेपन को दूर करने के जो उपाय है उन पर अमल नही हो पा रहा और जिन उपायों को अपनाने का मन है उन्हें खरीदने की पहुँच अभी नही जुटा पाई हूँ.
सार संक्षेप ये है कि यहाँ मन लग रहा है रम नही रहा. कुछ लोग यहाँ आकर लुधियानवी हो गए और मैं अब तक वो वजह नही जुटा पाई जिससे लुधियाना के कुछ लम्हे बटोर पाऊ अपनी यादों के लिए. नाम के साथ सरनेम जोड़ना तो दूर की बात है.
लोग अच्छे नहीं है जब ये सोचती हूँ तो लगता है क़ि मैं खुद भी तो बहुत बुरी सी हो गई हूँ शायद. और फिर किसी ने कहा क़ि पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला मैं मोम हूँ उसने छू कर नहीं देखा शायद इस शहर के साथ भी मेरी चाहतों का कुछ ऐसा ही सिलसिला चल रहा है. मैं ही नहीं छू पाई हूँ यहाँ क़ि रूह को.. खैर आजकल तो धुंध भी बहुत है रूह को ढूँढ पाना फिर से एक मुश्किल भरा काम होगा. न जाने क्यों दिल चाहता है क़ि मैं उस रूह को न तलाश करू वो रूह खुद ब खुद मुझे दूंढ ले
पहले से भी ज्यादा आलसी हो गई हूँ यहाँ आकर ...............
6 टिप्पणियां:
बहुत ही बढ़िया एह्साह है
... uffff ... kyaa kahane !!
हिमानी जी,
गहरे एहसास के साथ सुंदर प्रस्तुति...
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नये दसक का नया भारत (भाग- १) : कैसे दूर हो बेरोजगारी ?
beautiful
beautiful
इसके अलावा कुछ सूझ नहीं रहा इसलिए फिर वही बात लिख रहा हूं। दादी हो गई हो।
बहुत अच्छा लिखा है और अच्छा लिखने लगी हो। पढ़कर अच्छा लगता है। सुखद अहसास होता है ये जानकर की जिस छोटी सी हिमानी को हमने देखा था वो अब बड़ी हो गई है। बड़ी बातें समझती है और बेहद सुंदर तरीके से उसे अभिव्यक्त करती है. उम्मीद है जल्दी ही मन रमने लगेगा और लुधियानवी भी हो जाओगी।
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