चाहतों की एक चैन सी है
हर पल में पलती बढती बिगडती
हर पल में पलती बढती बिगडती
प्रेम कहानिओ के बीच
तुम मुझे चाहते हो
और मैं जिसे चाहूंगी
वो शायद
तुम मुझे चाहते हो
और मैं जिसे चाहूंगी
वो शायद
चाहता होगा किसी और को
उफ़ !
उफ़ !
ये दफ़न होती जाती
अधूरी दासताएँ
ये बढ़ता अँधेरा
और सिमटते कोहरे में
अधूरी दासताएँ
ये बढ़ता अँधेरा
और सिमटते कोहरे में
दुबकती छिपती
अकेली रातें
और
अकेली रातें
और
ये सुबह भी मांग लाइ है जैसे
रात से कुछ सन्नाटा उधार
भरी दुपहरी में जैसे
सूरज को भी आ गई है नींद
शाम से कुछ उम्मीदें लगाये बैठे थे कि
सूरज मियां कि आँख खुली
और शब्बा खैर कहके
रात से कुछ सन्नाटा उधार
भरी दुपहरी में जैसे
सूरज को भी आ गई है नींद
शाम से कुछ उम्मीदें लगाये बैठे थे कि
सूरज मियां कि आँख खुली
और शब्बा खैर कहके
वो भी चलते बने
फिर क्या
फिर वही रात मिली
चंचल, अल्हड, महोश, मदमस्त, दीवानी सी
तारों की महफ़िल में भी वीरानी सी
ये चाहतों की चैन
तेरे मेरे दरम्यान ही नही है बस
दूर ऊपर भी कहीं
फिर क्या
फिर वही रात मिली
चंचल, अल्हड, महोश, मदमस्त, दीवानी सी
तारों की महफ़िल में भी वीरानी सी
ये चाहतों की चैन
तेरे मेरे दरम्यान ही नही है बस
दूर ऊपर भी कहीं
चल रहा है चाहतों का
अधुरा सा एक सिलसिला
चाँद चाहता है चांदनी को
चांदनी आसमान को
और आसमान निहारता है धरती को एकटक
चाँद चाहता है चांदनी को
चांदनी आसमान को
और आसमान निहारता है धरती को एकटक
3 टिप्पणियां:
... bahut sundar ... behatreen rachanaa !!!
हिमानी जी
बहुत सुंदर प्रस्तुति. शायद चाहत का कोई अंत नहीं.....
.
मेरे ब्लॉग सृजन_ शिखर ( www.srijanshikhar.blogspot.com )पर " हम सबके नाम एक शहीद की कविता "
यह चाहत ऐसी ही होती है ...सुन्दर अभिव्यक्ति
एक टिप्पणी भेजें