रविवार, 21 नवंबर 2010

आज चाँद पूरा है फलक पर



चाँद 
हर दिन के साथ बढ़ता हुआ 
हर दिन के साथ घटता हुआ  
जिंदगी के उतार चढावो को 
अपनी चांदनी से सराबोर कर 
तीस दिनों में एक बार आकर ही 
महीने भर की हर 
टीस को सहला जाता हो जैसे
हर दाग के पीछे छिपी ख़ूबसूरती को 
दिखा जाता हो जैसे 
जैसे कहता हो कि
रात कि ख़ूबसूरती को पहचान 
ऐ राही 
ये रात ही जिंदगी के हर दिन का फलसफा है 


जाने क्यों चाँद देखते वक़्त शब्दों के अकाल आयर भावनाओ का एक आलोडन सा उमड़ पड़ा है 
एक एक शब्द कहना सागर से मोती चुनने सरीखा लग रहा है 
फिलहाल इतना ही 
उस चाँद के लिए जो आज फिर से पूरा है फलक पर 



5 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

जैसे कहता हो किरात कि ख़ूबसूरती को पहचान ऐ राही ये रात ही जिंदगी के हर दिन का फलसफा है
यकीनन यही जिन्दगी का फलसफा है. दिन का उजाला रात के बाद ही मिलती है

Prataham Shrivastava ने कहा…

chand ki roshni kafi hai hato ki lakeero ko padne ke liye ise din ke ujale ki koi zarurat nahi hai diwan sahab

Prataham Shrivastava ने कहा…

chand ki roshni kafi hai hato ki lakeero ko padne ke liye ise din ke ujale ki koi zarurat nahi hai diwan sahab

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुति ... गहरे जज्बात के साथ लिखी गई सुंदर कविता

संजय भास्‍कर ने कहा…

हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

कमजोरी

उस दिन हैंड ड्रायर से हाथ सुखाते हुए मैंने सोचा काश आंसुओं को सुखाने के लिए भी ऐसा कोई ड्रायर होता . . फिर मुझे याद आया आंसुओं का स...