शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010

मासूम सी मुश्किलें

कदम दर कदम मेरे साथ रहती है
कुछ मासूम सी मुश्किलें
जैसे जानती हो
वो मुझे हमेशा से
मालूम चल जाता हो उन्हें मेरी हर आहट  का पता
मेरे हर मकसद की वजह

सुकून के एक छोटे से पल में
भी इनके आने का ही शोर रहता है
हर ख़ुशी से हो जाती हूँ मैं अनमनी   सी
मुश्किलों की उस सनसनी में 
फिर कौन साथ देता है 

अपना पराया तो महज दो शब्द हैं विरोधाभास के 
आखिर तो हर आदमी में एक आदमी रहता है
प्यार, वफा, नफरत, धोखा 
कहने को तो किस्से हजारों है 
मगर सब एक इन्तजार में हैं
चुप है यहाँ
की देखे कौन पहले कहता है 

जिक्र हो उठा कहीं उनकी कहानी का पहले तो फिर होगा ये सितम
की शब्द ढाएँगे जुलम
कहेंगे देखो भई 
उस शराफत के पैमाने में ही तो नशे का सारा चिलम रहता है 

2 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत गहन भाव...हिमानी जी को बधाई.

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति.

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