बुधवार, 4 नवंबर 2009

मेरे शब्द

मेरे शब्दों में ही कहीं दूर खड़ी
दिखी है मुझे मेरी शक्सियत अक्सर
जिसे मेरा कहकर मगर मैंने
ख़ुद में बसाया वो शब्द सोर्फ़ मेरे नहीं थे
कभी किसी मुसाफिर की थकन में भी वाही शब्द थे
कभी किसी की शायर की कशिश को भी उन्होंने ही किया था बयाँ
किसी की दुआओं में भी भी शामिल रहे वो
और किसी की नफरत को भी होटों तक ला दिया था
किस तरह कहूँ की मेरे शब्द थे वो
अपना कहकर उन्हें मैंने ख़ुद ही को धोखा दिया था
किसी की जुबान से निकलकर
किसी के होंटों से होते हुए
किसी के कलामों में सोते हुए
मेरी कलम तक पहुचे थे वो
और मैंने कभी ख़ुद को उनमे
कभी उनको ख़ुद में कैद कर लिया था

5 टिप्‍पणियां:

Vinay ने कहा…

शब्दों की जादूगर हैं आप

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चाँद, बादल और शाम

vandana gupta ने कहा…

bahut sundar prastuti.

M VERMA ने कहा…

बहुत सुन्दर है यह प्रस्तुति
भावनात्मक

Deepak Tiruwa ने कहा…

sundar rachna ke liye badhaai
श्रीमती के नाम ghazal

संजय भास्‍कर ने कहा…

pehli bar blog par ayaa hoon behtreen likhti hai.. himani ji...

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