ये कविता मैंने कहीं पर पढ़ी थी न जाने क्यो बहुत सच्ची लगी आप के लिए पोस्ट कर रही हूँ शायद आपको भी ऐसा ही कुछ अनुभव हो
लड़किया जब प्रेम करती है
तो वो खिला पाती है हर मौसम
तब वो चुपके से उत्तर जाती है
खुश्बूयों की किसी नदी में
या फ़िर पर्वतों की हथेलियोमे चमचमाती
किसी झील में तारती रहती है देर तक
उन्हें लगता है धरती और आसमान के
बिच जो इन्देर्धनुष खिलता है
वो उन्ही का प्रतिबिम्ब है
लड़किया अपने भीतर जगे उस मौसम के वशीभूत
लिखती है लंबे लंबे ख़त वों जानती है
सबकी नजरो से बचाकर लिखा गया
ये ख़त जब पहुंचेगा गंतव्य तक
तब स्वर्ग में बैठे देवता
उनकी राह में एक और फूल रख देंगे
लड़किया मानती है उनके प्रेमी
आएंगे उनकी उंगली थामने
प्रलय और झंझावातों के बीच भी
लड़किया जो आकंठ डूबी है प्रेम में
वो नही जानती कि विदा भी होते है मौसम
1 टिप्पणी:
khubsoorat
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