उदास रातों में जो कविताएं लिखी जाती हैं
वो अक्सर दिन के उजाले को मैला कर जाती हैं।
उदास रातों में जो ख्वाब बुने जाते हैं।
वो जिंदगी की हकीकत को और कसैला कर जाते हैं।
उदास रातों में जिन लोगों को याद किया जाता है।
उन्हें दिन के समय य़ूं ही भुला भी दिया जाता है।
उदास रातों में जिन बातों से चेहरे पर हंसी आती है
उन्हीं बातों से दिन की रोशनी में आंखों के भीतर ही भीतर नमी आती है।
उदास रातें जो कहना चाहती हैं
उन्हें सुनने की हिम्मत दिन में कहीं खो सी जाती है।
उदास रातेॆ जब पास आकर बैठती हैं
तो उदासी दोहरी हो जाती है।
दिन भर की हंसी-खुशी कोरी हो जाती है।