सोमवार, 19 अगस्त 2013

भावनाओं की अर्थव्यवस्था

मुझे कुछ मिलने वाला था
...नहीं मिला
मैं दुखी हूं।
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उसके पास कुछ था
...छिन गया
वह दुखी है।
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तुम्हारे पास सब कुछ है
तुम्हारी हर दुआ कुबूल है
तुम्हारा हर ख्वाब सच है
अब पाने को कुछ नहीं है
तुम दुखी हो।
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दुख भी अजीब चीज है
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मांग शून्य है
और उत्पादन बढ़ता ही जा रहा है
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भावनाओं की अर्थव्यवस्था डगमगाने वाली है
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किसी कवि से दुखों का विज्ञापन करवाना चाहिए।

1 टिप्पणी:

विभूति" ने कहा…

प्रभावशाली रचना.....

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