शनिवार, 1 सितंबर 2012

दो टुकड़े दिल

घर से निकलने से पहले मां

के सवालों का जवाब दिया

दफ्तर में बॉस की बातों का

दोस्तों के साथ

उन्ही की हां में हां

और न से न

मिलाई

मामी, बुआ, चाची, भैया और भाभी

के भी थे कुछ सवाल

जिन्हें पल भर में सुलझा दिया

हर बार

कितने दिनों तक सवालों में ठनती रही रार

मगर जवाबों ने बाजी मार ली हर बार

आज लेकिन सवाल सख्त था

जवाब पस्त था

आज अपने ही दिल ने

अपने ही दिल से पूछी

थी एक बात

क्यों री छोरी

कहां से आए हैं ..

किसके लिए हैं.. ये जज्बात

सवालों के साथ

सलाह भी मुफ्त थी

न चाहते हुए भी..

न जाने क्यों

बार-बार

चीख-चीख कर

कह रहा था

भटक मत...भटक मत

तुझे सिर्फ एक राह जाना है

उस एक ही को अपनाना है

उसी से करनी है दिल की सारी बात

...

...

और फिर अचानक

पता ही नहीं चला

कब एक दिल दो टुकड़ों में बंट गया

एक हमेशा के लिए सवाल बन गया

और दूसरा जवाब बनने की कोशिश में

मर गया...

लड़की के दिल की किस्मत भी

लड़की जैसी ही...।



2 टिप्‍पणियां:

Saumya ने कहा…

very touching...the last few lines are so true!!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

दिल के सवाल का जवाब आसानी से नहीं मिलता ...

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