शनिवार, 25 फ़रवरी 2012

पुरुष प्रधान कविता



नाबालिग लड़की से बलात्कार
पत्नी पर, शराबी पति का अत्याचार
बेटी के प्यार पर, बाप का प्रहार
ऐसी तमाम खबरों को लिखने 
और पढ़ने के बावजूद भी
मैं अपनी रचनात्मकता की फेहरिस्त में
जोड़ना चाहती हूं
एक पुरुष प्रधान कविता,
एक धारावाहिक
या ऐसी कहानी
जो पुरुष के अहसास और अनुभव बयां करे
लेकिन सांचों में ठिठके
इस तबके की तारीफ अफजाई के लिए
मुझे लंबा इंतजार करना होगा
या फिर जल्द ही
किसी आदमी को पुराने सांचों को तोड़
बाहर निकलना होगा
मिसाल बनना होगा
ताकि मेरी रचनात्मकता को
एक तथ्य मिल सके
और महिला समाज को एक उम्मीद

10 टिप्‍पणियां:

विभूति" ने कहा…

हमें भी इंतज़ार है....

***Punam*** ने कहा…

superb.............

vidya ने कहा…

अच्छी रचना...

हां मगर सभी पुरुष एक से नहीं होते...

शुभकामनाएँ..

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ये काम सच में आदमी को करना होगा ... और अपने बंधन को उसे आपही काटना होगा ...

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

अच्छों की संख्या ही ज्यादा है...

बेनामी ने कहा…

गहन सन्देश ! बढ़िया प्रस्तुति !!

kavita verma ने कहा…

sundar rachana..

अति Random ने कहा…

हबीब साहब ने तो दावे के साथ कह दिया अच्छों की संख्या ही ज्यदा है, लेकिन कई महिलाएं इस दावे के असलियत के तराजू में रखकर खारिज कर सकती हैं..

अति Random ने कहा…

विद्या जी एक जैसा न होना तो वाकेइ एक सच है और अच्छा भी है कि बदलाव की एक चिंगारी तो है..लेकिन पूरे पुरुष समाज को सोच ऊंची करनी होगी...जब तक एक दो पुरुष ऐसे होंगे तब तक या तो उन्हें जोरु का गुलाम कहा जाएगा या नामर्द..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

कुछ अपवाद होते हैं ... बहुत अच्छी रचना

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