प्यार को बयाँ करना आसान नहीं है
प्यार सबको एक न एक बार होता है
बारिश जैसा हसीं समां हो या फिर पतझड़
प्रेम के फूल हर पल खिलते रहते है
ये एक ऐसा विषय है जिससे जुडी
एक ही बात को
एक ही अहसास को
हर कोई अपने अंदाज में बयाँ करता है
और हर बार ये पुरानापन
एक नई सी हिमाकत कर जाता है
हिमाकत
कुछ और दिलों में प्रेम पनपाने की
मैंने शायद सच में किसी से प्रेम नहीं किया
लेकिन मैं हर वक़्त प्रेम में हूँ
कभी मेरे घर की छत से गुजरते किसी बदल के साथ प्रेम में
कभी मेरे होंटों पर आ गिरी बारिश की किसी बूँद के साथ प्रेम में
कभी उस हवा के झोंके के साथ
जिसने तरतीब से बंधे हुए मेरे बालों को बेतरतीब कर
मेरे चेहरे को हमेशा से ज्यादा खूबसूरत बना दिया
कभी उस पीले पत्ते के साथ प्रेम में
जो आंधी के बाद
दरवाजे की चौखट पर आ खड़ा हुआ
बिना कोई दस्तक दिए मेरे इन्तजार में
मैं प्रेम में हूँ उन सपनो के साथ
जिन्होंने मुझे जिंदगी का संबल दिया
उस वक़्त
जब में मौत के तथ्यों पर
गहनता से शोध करने लगी थी
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अपनी बात के बाद
अज के इस हसीं मौसम के नाम तुर्की कवि नाजिम हिकमत (1902-1963) की एक कविता आपके लिए पोस्ट कर रही हूँ आप इसमें डूबे बिना रह नहीं सकेंगे
तुम्हें प्यार करना
तुम्हें प्यार करना यों है जैसे रोटी खाना नमक लगाकर,
जैसे रात को उठना हल्की हरारत में
और पानी की टोंटी में लगा देना अपना मुंह,
जैसे खोलना बिना लेबल वाला कोई भारी पार्सल
व्यग्रता, खुशी और सावधानी से.
तुम्हें प्यार करना यों है जैसे उड़ना समुन्दर के ऊपर
पहली-पहली बार,
जैसे महसूस करना इस्ताम्बुल पर आहिस्ता-आहिस्ता पसरती सांझ को.
तुम्हें प्यार करना जैसे यह कहना " ज़िंदा हूँ मैं ".