रविवार, 26 जून 2011

तुम्हें प्यार करना जैसे यह कहना " ज़िंदा हूँ मैं ".

प्यार को बयाँ करना आसान नहीं है 
प्यार सबको एक न एक बार होता है 
बारिश जैसा हसीं समां हो या फिर पतझड़ 
प्रेम के फूल हर पल खिलते रहते है 
ये एक ऐसा विषय है जिससे जुडी 
एक ही बात को 
एक ही अहसास को 
हर कोई अपने अंदाज में बयाँ करता है 
और हर बार ये पुरानापन 
एक नई सी हिमाकत कर जाता है
हिमाकत 
कुछ और दिलों में प्रेम पनपाने की 
मैंने शायद सच में किसी से प्रेम नहीं किया 
लेकिन मैं हर वक़्त प्रेम में हूँ 
कभी मेरे घर की छत से गुजरते किसी बदल के साथ प्रेम में 
कभी मेरे होंटों पर आ गिरी बारिश की किसी बूँद के साथ प्रेम में 
कभी उस हवा के झोंके के साथ 
जिसने तरतीब से बंधे हुए मेरे बालों को बेतरतीब कर 
मेरे चेहरे  को हमेशा से ज्यादा खूबसूरत बना दिया 
कभी उस पीले पत्ते के साथ प्रेम में 
जो आंधी के बाद 
 दरवाजे की चौखट पर आ खड़ा हुआ
बिना कोई दस्तक दिए मेरे इन्तजार में 
मैं प्रेम में हूँ उन सपनो के साथ 
जिन्होंने मुझे जिंदगी का संबल दिया 
उस वक़्त 
जब में मौत के तथ्यों पर 
गहनता से शोध करने लगी थी 
.
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अपनी बात के बाद 
अज के इस हसीं मौसम के नाम तुर्की कवि  नाजिम हिकमत (1902-1963)  की एक कविता आपके लिए पोस्ट कर रही हूँ आप इसमें डूबे बिना रह नहीं सकेंगे


तुम्हें प्यार करना
तुम्हें प्यार करना यों है जैसे रोटी खाना नमक लगाकर, 
जैसे रात को उठना हल्की हरारत में 
और पानी की टोंटी में लगा देना अपना मुंह, 
जैसे खोलना बिना लेबल वाला कोई भारी पार्सल 
व्यग्रता, खुशी और सावधानी से. 
तुम्हें प्यार करना यों है जैसे उड़ना समुन्दर के ऊपर 
पहली-पहली बार, 
जैसे महसूस करना इस्ताम्बुल पर आहिस्ता-आहिस्ता पसरती सांझ को.
तुम्हें प्यार करना जैसे यह कहना " ज़िंदा हूँ मैं ".

बुधवार, 22 जून 2011

रात, चाँद और एक सवाल

सारा आसमान नीला था
मगर चाँद पर पड़ी थी
सफ़ेद बादलों की एक चादर
सब लोग सो गए
मगर रात बेचैन थी
चाँद चादर की ओट में से भी
बहुत कुछ कह रहा था
मगर रात खुले आम घूमते हुए
 भी खामोश थी
मैं एक टक चाँद को देखती
और एक पल रात को महसूस करती
ये वो समय था जब सारी कायनात शांत थी
पेड़ फूल  पत्ते कलियाँ
झील झरने सागर नदियाँ
सब
मगर मैंने सुना कि
रात और चाँद चीख चीख कर
बातें कर रहे हैं
चाँद है तो रात है
और
रात है तो चाँद है
मगर
चाँद वहां है
रात यहाँ है
ये कमबख्त खुदा कहाँ है





मंगलवार, 7 जून 2011

ये नामुराद शहर

सपनो की अपनी एक दुनिया होती है लेकिन
मधय्वार्गिये लोगों की  दुनिया में सपनो की दुनिया का नाम कुछ  शहरों से जुडा है
जैसे लोग हनीमून मनाने के लिए स्विट्जर्लैंड  जाने का सपना देखते है
गर्मिया बिताने के लिए शिमला, मंसूरी या नैनीताल जाने का 
सपना देखते है
जीवन के आखिरी पड़ाव पर चारों धामों की यात्रा करने का सपना देखते है
और
युवा एक नई, बेहतर, शानदार, सितारों सरीखी जिंदगी जीने के लिए मुंबई जाने का सपना देखते हैं
क्या सपनो की दुनिया सिर्फ मुंबई है ....?
मैं मुंबई में रहने वाली ऐसी आँखों को भी जानती हूँ  जिनमे घर वापस लौटने का सपना पलता है
घर जो लखीम पुर खीरी में है , घर जो उज्जन में है , घर जो चित्रकूट में है...घर जो रांची में है
एक तरफ से देखें तो  घर वापसी का ये सपना गलत है, भावुकता है 
या कमजोरी है
दूसरी तरफ से देखे तो ये सपना प्यार है , लगाव है , खिंचाव है 
या जरुरत है
सपने सिर्फ वही तो नही होते न जो शाहरुख़ खान  बनने के लिए देखे जाते हैं..सपने वो भी होते हैं जो गरमी में बिना बिजली के सोती माँ के लिए इन्वेर्टर लगाने के लिए देखे जातें है...जो पापा की झुकती कमर को अपने हाथों के सहारा देने के लिए देखे जाते हैं  इसलिए बहुत से ऐसे सपने हैं जिनका शहर मुंबई नही है नॉएडा  है , गाज़ियाबाद है,  कलकाता है, बिहार भी है और ऐसे ही बहुत से नामुराद शहर जहाँ इन लोगों का घर बसता है
इस सब की जद्दोजहद में सिर्फ एक सपना होता हैं घर वापसी का


विस्थापन एक बेहद पीड़ादायक शब्द है और भविष्य बनाने के लिए घर बार को छोड़कर दूर किसी दूसरे शहर में जा बसना विस्थापन सरीखी ही पीड़ा देता है.. हाँ ये पीड़ा पथरीली नही होती मखमली होती है मगर पीड़ा तो होती है न


कमजोरी

उस दिन हैंड ड्रायर से हाथ सुखाते हुए मैंने सोचा काश आंसुओं को सुखाने के लिए भी ऐसा कोई ड्रायर होता . . फिर मुझे याद आया आंसुओं का स...