खोल दो का आग्रह
फिर मेरे सामने है
क्योंकि अब वो मुझे
अपनी जंजीरों में जकड़ना चाहते हैं
मेरी उड़ान मंजूर है उन्हें
मगर वो उसकी दिशा बदलना चाहते है
मेरी आहटों का जिक्र भी भाता है उन्हें
और मेरे कदम बढ़ाने पर भी वो ऐतराज जताते है
उनकी मीठी सी बातों में एक तीखा सा पन है
छलकती सी आँखें छल का दर्पण है
सब कुछ छिपा कर जाने क्या बताना चाहते हैं
मेरे जवान दिल में बैठे बचपने को
वो हर रोज बहकाना चाहते है
मेरी बातों की तफसील से मतलब नहीं उन्हें
मेरे बदन की तासीर को आजमाना चाहते हैं
जो नाम हिमानी है
उसमे वो क्या आग जलाएंगे
बर्फ की इस नदी को कितना पिघलायेंगे
बारिश तो ठीक है मगर
बाढ़ का कहर क्या वो सह पाएंगे
सवाल उनके भी हैं सवाल मेरे भी
मैं विश्वास करने में यकीं रखती हूँ
उनके सवालों में है शक के घेरे भी
देखें अब हम
भाग खड़े होंगे वो
या इन हालातों को सुलझाएंगे???
6 टिप्पणियां:
बहुत अच्छी कविता।
बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
गहन भावों को संजोये अच्छी रचना
!
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
www.marmagya.blogspot.com
behad khoobsurat rachana
jai hoooooooooo mangal hoooooooo
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