गुरुवार, 18 दिसंबर 2008

दास्ताँ-ऐ देश

आजकल इतना कुछ हो रहा है कि समझ नही आता किस बात पर रोष प्रकट करूँ किस बात का समर्थन करू और किस फैसले के विरोध में बोलू आतंकवाद और मंदी के बारे में सोचे या इस बात पर विचार करे कि जोर्ज बुश को एक पत्रकार ने जूता क्यो मारा ???? बड़े-2 प्रशन चिन्ह हर समस्या के आगे लगते जा रहे है लेकिन जवाब मिलता है तो बस ये कि अगर आप अख़बार पड़ेंगे तो लिखा होगा कि रक्षा मंत्री ऐ के एंटनी ने कहा कि हम पाकिस्तान के खिलाफ फिलहाल कोई करवाई नही करेंगे तो इस पर न्यूज़ चैनल में सेना के जर्नल इस बात पर निराशा जताते हुए रक्षा मंत्री के इस बयाँ को बेवकूफी बता रहे होंगे एक आम आदमी आपके और मेरे जैसा बेशक इन मामलो से सीधे नही जुडा हुआ है लेकिन वो समस्या का समाधान जानना चाहता है देखना चाहता कि जिन लोगो को उसने देश कि कमान दी है वो क्या कर रहे है लेकिन उसे क्या दिखाई देता है ये कि भाजपा कह रही है कि हम होते तो ऐसा कभी नही होता और कांग्रेस कह्ती है कि ये सब बीज भाजपा वालों ने ही बोए है

ये सब देखकर हम और आप येही कह पाते है कि पता नहीं क्या होगा इस देश का और फ़िर महंगाई और काम के बोझ तले दबा आम आदमी फ़िर अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो जाता है

हमारी सरकार चाहे वो कोई भी हो काम तो एक ही जैसे कर रहे है बस नाम बदल दिया जाता है ताकि लगे कि कुछ नया हो रहा है ऐसे मुद्दों पर जो विश्व परिप्रेक्ष्य में व्याप्त है एक साझा समझ और एकता से काम लेना चाहिए लेकिन प्रबुद्ध लोग उन्ही बातों पर रुके हुए है जिनसे समस्या शुरू हुई थी

अलबर्ट आइन्स्टीन की कही एक बात का जिक्र यहाँ करना चाहूंगी उन्होंने कहा था

इस दुनिया में आज जो समस्या है वो उस सोच से नही ख़तम होंगी जिसने उन्हें पैदा किया है

इस विचार पर आज गौर करने की जरुरत है ताकि जड़ से इन समस्याओं से निपटा जाए

देश की स्थिति को देखते हुए देवेन्द्र आर्य की एक ग़ज़ल प्रस्तुत कर रही हु जिसके बाद मेरा कुछ भी कहना कुछ मायने नही रखता

न हो पाया था जो ईमान देकर

हुआ वो एक bida पान देकर

मरेंगे एक दिन सबको पता है

मगर सब जी रहे है जान देकर

उजाले को त्रिस्कृत कर रहा है

अँधेरा नागरिक सम्मान देकर

मेरी पहचान पानी कर न दे वो

मओह्ह्बत की कोई पहचान देकर

हवा में वो उदा देता है बातें

जरुरत से ज्यादा ध्यान देकर

वो लिखवा लेता है खलिहान सारा

बमुश्किल एक मुठी धान देकर

कवच कुंडल ही क्यो मांगे गए फिर

किसी से दान में वरदान देकर

तुम्हे सच को परखना चाहिए था

विरासत में मिला सब ज्ञान देकर

निखारी जा रही है तानाशाही

असहमतियों को भी इस्थान देकर

ajagat

कमजोरी

उस दिन हैंड ड्रायर से हाथ सुखाते हुए मैंने सोचा काश आंसुओं को सुखाने के लिए भी ऐसा कोई ड्रायर होता . . फिर मुझे याद आया आंसुओं का स...