गुरुवार, 6 मई 2010
पतंग से जुडी जिंदगी की डोर
शादी को लेकर दुनिया भर में तमाम विचार प्रचलित है. दार्शनिक या विचारक हो या फिर हर शक्स की निजी सोच ...शादी से जुड़े विचार की गहराई में उतरना आसान नही लगता. कही सोच ..अनुभव को बदल देती है तो कही अनुभव... सोच को. इन तमाम उहापोहो के बीच एक सर्वमान्य सच ये है की शादी दो लोगो के बीच का एक सम्बन्ध है जो जीवन भर के लिए जोड़ा जाता है. हाल ही में उठे विवाद हो या सदीओ पुराने अत्याचारों की दस्ता इनकी जड़ में जो बात खाद पानी की तरह डाली जा रही है उसके मूल विचार में कई बातों की घाल मेल है
शादी समान जाति-धर्म के लोगो में हो ....समान गोत्र न हो....बिरादरी ऊँची हो....बहुत आगे जाये तो लड़की गोरी और सुन्दर हो ...कद-काठी छोटी न हो ..और न जाने क्या-क्या....उत्सव की तरह मनाये जाने वाले शादी नाम के इस पर्व में न जाने कितनी भावनाओं की बलि चढ़ाई जाति जा रही है ...और यहाँ बीते दिनों बात वास्तविक बलि तक पहुँच गई है ....दिल्ली की पत्रकार निरुपमा की हत्या हो या ऐसे ही कितने दबे पड़े केस....बिना मतलब के मुगालतों ने मौत को आखिरी मंजर बना दिया है ....और अगर अब ये सवाल या विचार उठाये की लोगों में जागरूकता नहीं है या लोग पढ़े लिखे नहीं है तो ये बाते बेहद बेमानी लगती है ...भले चंगे ऊँचे खानदानो के पढ़े लिखे लोग भी अपने तथाकथित सम्मान के लिए अपने बच्चों के साथ जिंदगी और मौत की जद्दोजह्दा को अंजाम देने में गुरेज नहीं करते.
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लड़कियां भाग कर शादी कर रही है ..छुप-छुप कर अपने चाहने वालों से मिल रही है और फिर बात एक बगावत तक पहुँच कर जिंदगी से जिंदगी को बाहर कर रही है .....ये क्या है ....कैसी परवरिश है ये जो प्यार को एक विद्रोह के रूप में सामने ला रही है .........बहुत कुछ कहना लाज़मी नहीं है यहाँ अगर इस बात पर गौर किया जाये कि पतंग को पकड़ कर खीचने से वो टूट जाती है ...उस्क्ली डोर अपने हाथ में पकड़कर उड़ने कि आज़ादी दी जाये तो वो मंजिल तक भी पहुंचेगी और जीत भी आपकी ही होगी ....ये किस्सा महज पतंग का नहीं जिंदगी के कई अफ़साने जुड़ते है इस हकीकत से ......
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6 टिप्पणियां:
ये किस्सा महज पतंग का नहीं जिंदगी के कई अफ़साने जुड़ते है इस हकीकत से ......
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और इन अफ़सानों के कारण जिन्दगी पतंग सी हो जाती है ---
हाँ सही कहा शायद आपने की पतंग की डोर थामकर उसे ढील देनी चाहिए ,बशर्ते जब तक वो दूर जाकर भी दिखाई पड़ती रहे पर आँखों के सामने से ओझल होते ही एक बेचेनी हो तो शायद आप भी उस प्यारी पतंग को पकडे रहने पर मजबूर हो जायेंगे
bahut khoob..likha ekdam satyavachan kahe...agar thoda sa waqt nikalkar baatein bhi suni aur samjhi jaayein to aisi samasyayein na paida ho...
यह जिंदगी ऐसी ही है बढ़िया लेख है.
आज आपकी कई रचनाएँ पढ़ी, आपकी रचनाओं में एक अलग अंदाज है, पढ़कर अच्छा लगा!
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