यादें
यादों को बनाओ भी तुम
बिठाओ भी तुम
और सजाओ भी तुम ही
फिर चंद लम्हों के फासलें से
इन यादों में बह जाओ भी तुम ही
तुम ही पूछों सवाल खुद से
और जवाब भी दिए जाओ तुम ही
बात सोच के बागवानो की
एक फूल ही पर इतराओ भी तुम ही
तुम ही ने कहे थे वो शब्द
उस रोज जिनसे शमा जल उठी थी
आज फिर याद करके उन पलों को
पछताओ भी तुम ही
यादें
यादों को बनाओ भी तुम
बिठाओ भी तुम
और सजाओ भी तुम ही
शुक्रवार, 29 जनवरी 2010
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7 टिप्पणियां:
VERY VERY NICE , BAHUT HI ACCHA LAGA
यादों को बनाओ भी तुम
बिठाओ भी तुम
और सजाओ भी तुम ही
आज फिर याद करके उन पलों को
पछताओ भी तुम .
यादों को बनाओ भी तुम
बिठाओ भी तुम
और सजाओ भी तुम ही
अच्छा प्रयास - शुभकामनाएं
खूबसूरत अभिव्यक्ति लगी ।
बस ! यादों पर इतना ही !
विषय के हिसाब से बात बहुत कम रही ..
कविता में इतनी जल्दबाजी या लापरवाही उचित नहीं ..
काव्य विषय के साथ न्याय करना चाहिए ..
चार पंक्ति कोट करके क्या कमेन्ट करना !
जो समझा सो कह दिया ... आभार ,,,
जो भी लिखा गया है, अच्छा लिखा है। बधाई!!
एक नयी प्रकार की टिप्पणी के लिए अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी को साधुवाद!!!
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
यादें .,......... यादें ............ बस यादें ........... याद आती हैं ..... बातें भूल जाती हैं .......... बहुत खूब रचना ........
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