मेरे शब्दों में ही कहीं दूर खड़ी
दिखी है मुझे मेरी शक्सियत अक्सर
जिसे मेरा कहकर मगर मैंने
ख़ुद में बसाया वो शब्द सोर्फ़ मेरे नहीं थे
कभी किसी मुसाफिर की थकन में भी वाही शब्द थे
कभी किसी की शायर की कशिश को भी उन्होंने ही किया था बयाँ
किसी की दुआओं में भी भी शामिल रहे वो
और किसी की नफरत को भी होटों तक ला दिया था
किस तरह कहूँ की मेरे शब्द थे वो
अपना कहकर उन्हें मैंने ख़ुद ही को धोखा दिया था
किसी की जुबान से निकलकर
किसी के होंटों से होते हुए
किसी के कलामों में सोते हुए
मेरी कलम तक पहुचे थे वो
और मैंने कभी ख़ुद को उनमे
कभी उनको ख़ुद में कैद कर लिया था
बुधवार, 4 नवंबर 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कमजोरी
उस दिन हैंड ड्रायर से हाथ सुखाते हुए मैंने सोचा काश आंसुओं को सुखाने के लिए भी ऐसा कोई ड्रायर होता . . फिर मुझे याद आया आंसुओं का स...
-
नींद खो गई है भूख सो गई है सिर्फ प्यास लग रही है उफ़ ! ये इश्क कांटे ही थे वो चमकीले कागज में लिपटे हुए हम माना किये गुलाब गिर गए...
-
प्रेम का अनुवाद देह होता है किसी ने कहा था मैंने कहा जिस प्रेम का अनुवाद देह है वो प्रेम से कुछ अलग है प्रेम से कुछ कम है उसने कहा ये तुम्हा...
-
आज सोचा कि जिंदगी की तन्हाई पर नही हर रात मुझे गुदगुदाता है जिसका अहसास अकेले से बिस्तर की उस रजाई पर लिखू उन बातों पर नहीं जिनसे बे...
5 टिप्पणियां:
शब्दों की जादूगर हैं आप
---
चाँद, बादल और शाम
bahut sundar prastuti.
बहुत सुन्दर है यह प्रस्तुति
भावनात्मक
sundar rachna ke liye badhaai
श्रीमती के नाम ghazal
pehli bar blog par ayaa hoon behtreen likhti hai.. himani ji...
एक टिप्पणी भेजें