अब न घर से निकलना होता है
न घर वापस लौटना
अब सपनो वाले दिन रात भी नही है
अब है सचमुच में मेरा सच से सामना
पहले दुनिया के इस शोर में
मेरी भी एक आवाज़ थी
और आजकल .......
शांत देखकर मुझे
दीवारों दर भी कहते है
इस खामोशी को मत थामना
तठस्थ हो जाने का अपराध
कर रहा है वक़्त
मगर सजा पा रही हूँ मैं
हकीक़त के करीब आ गई हूँ
और ख्वाबों से बढ़ गया है फासला
नजदीकी का तो कोई पैमाना नही होता
बढती हुई इस दूरी को चाहती हूँ नापना
लफ्जो की कोई सीमा नही है
मगर भाव जैसे सब बह गए है कही
बिन पतवार की नाव के साथ
मैं तो संग ही लेकर चली थी नाव भी पतवार भी
भूल हुई बस यही की मांझी भी मैं ही बनी थी
जबकि खिवैया है कोई और ............मैं नहीं
मंगलवार, 15 सितंबर 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कमजोरी
उस दिन हैंड ड्रायर से हाथ सुखाते हुए मैंने सोचा काश आंसुओं को सुखाने के लिए भी ऐसा कोई ड्रायर होता . . फिर मुझे याद आया आंसुओं का स...
-
तुम्हारी अनुपस्थिति ऐसे है जैसे वो लकीर जिस तक पहुंचकर एक-दूसरे में सिमट जाते हैं धरती और आसमान। तुम्हारी अनुपस्थिति ऐसे है ...
-
आज सोचा कि जिंदगी की तन्हाई पर नही हर रात मुझे गुदगुदाता है जिसका अहसास अकेले से बिस्तर की उस रजाई पर लिखू उन बातों पर नहीं जिनसे बे...
-
दोस्ती के दायरों के बीचोंबीच प्यार के कुनमुनाते एहसास को जब कोई नाम न मिले एक जरुरी जुस्तजू के बीच जब उस नाजायज जिक्र को जुबान न मिले...
2 टिप्पणियां:
Sundar bhavnaon se saji sundar kavita..
मैं तो संग ही लेकर चली थी नाव भी पतवार भी
भूल हुई बस यही की मांझी भी मैं ही बनी थी
जबकि खिवैया है कोई और ............मैं नहीं
bhawanao ka sangam har alfaz se nikal pada,sunder rachana.
एक टिप्पणी भेजें