मंगलवार, 27 अक्टूबर 2009
छोटा सा सवाल
तब किस तरफ़ जाए कोई ?
?
?
?
अक्सर छोटे सवालों का जवाब बडा कठिन होता है ।
शनिवार, 24 अक्टूबर 2009
आंकडों में बसी जिंदगी
सपने कल्पना के सिवाय कुछ भी नही होते ...मगर कभी कभी सपनो से इंसान का वजूद जुड़ जाता है... अस्तित्व का आधार बन जाते है सपने ...जैसे सपनो के बगैर साँस लेना भी मुश्किल हो ..हाँ मुश्किल तो होता है मगर साँस लेना नही हर साँस के साथ सपनो के सफर में मंजिल तक पहुचना बहुत मुश्किल होता । आंकडों की दुनिया के महारथी कहते है की पुरी दुनिया में सिर्फ़ १० प्रतिशत लोग ही बेहतर जिंदगी बसर करते है बाकि ९० प्रतिशत लोग कीडे मकोडे की तरह जीते है खाते है पीते है और एक दिन मर जाते है । आंकडों की भी अपनी ही एक अलग दुनिया है जिस पर ज्यादा कुछ कहना बेकार है मगर हम जैसे लोग जो हर रोज आंकडों से ज्यादा असलियत से वाकिफ होते है उनके लिए १० या ९० प्रतिशत के हिसाब के बजाये उस ज़िन्दगी के मायने ज्यादा होते है जिसमे उनके नैनों में बसने वाली सपनो की फेहरिस्त का कोई एक अंश भी सच हो सके इसी कोशिश में वो जो दिन रात गुजारते है वो उनका संक्रमण काल होता है एक स्वर्णिम सवेरे की आशा में गुजरने वाला संक्रमण काल । येही उनके जीवन का वास्तविक सुख होता होता है आखिर कीडे मकोडे भी तो खाने की खोज करते है किसी के घर के सामान में रहने की जगह बनते है वो भी अपने हिस्से का संघर्ष करते है और इंसान भी
कमजोरी
उस दिन हैंड ड्रायर से हाथ सुखाते हुए मैंने सोचा काश आंसुओं को सुखाने के लिए भी ऐसा कोई ड्रायर होता . . फिर मुझे याद आया आंसुओं का स...
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तुम्हारी अनुपस्थिति ऐसे है जैसे वो लकीर जिस तक पहुंचकर एक-दूसरे में सिमट जाते हैं धरती और आसमान। तुम्हारी अनुपस्थिति ऐसे है ...
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आज सोचा कि जिंदगी की तन्हाई पर नही हर रात मुझे गुदगुदाता है जिसका अहसास अकेले से बिस्तर की उस रजाई पर लिखू उन बातों पर नहीं जिनसे बे...
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दोस्ती के दायरों के बीचोंबीच प्यार के कुनमुनाते एहसास को जब कोई नाम न मिले एक जरुरी जुस्तजू के बीच जब उस नाजायज जिक्र को जुबान न मिले...