रविवार, 18 मार्च 2012

तुम और मैं

तुमसे दूर जाने की कई वजह थी मेरे पास
फिर भी
मैं तुम्हारे सबसे नजदीक रहना चाहती थी
तुम हर बार
मेरे दिल पर दस्तक देकर
दुत्कार रहे थे मुझे
मैं हर बार
तुम्हारा दर्द सहलाना चाहती थी
तुम चाह रहे थे
सब कुछ छिपाना
मैं चाह रही थी जताना
तुम पहले ही
निगल चुके थे
सारी भावनाएं
मैं अब
दांतों तले
हर एक अहसास को
चबा रही थी
तुम
एक अहम शख्सियत बनना चाहते थे
मेरी जिंदगी में
मैं
तुम्हें अपनी दुनिया का
सबसे खास शख्स बनाना चाहती थी
तुम अच्छी तरह जान चुके थे मुझे
कई तरह परख चुकने के बाद
मुझे डर था तुम्हें खोने का
हर परख से पहले
तुम मुझे सिखाकर
खुद भूल गए थे प्यार करना
मैं अब भी सीखे जा रही थी

6 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूबसूरती से उकेरे हैं भाव ...सुंदर रचना

Nidhi ने कहा…

अच्छी रचना हेतु बधाई स्वीकारें...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

किसी दूसरे के अंदाज़ में अपना तरीका नहीं छोडना चाहिए ... प्यार सीखने को एक उम्र भी कम पड़ जाती है ... प्यार चीज़ ही ऐसी है जिसका कोई अंत नहीं होता ... सुन्दर भाव ...

Pallavi saxena ने कहा…

बहुत ही सुंदर भाव संयोजन के साथ सुंदर रचना...

Prataham Shrivastava ने कहा…

सिर्फ भाव रखने से कुछ नहीं होता ,उन्हें एक बेहतर तरीके से रखना भी आना चाहिए शायद

dwandw.blogspot.com ने कहा…

bahut hi sundar rachna.

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