शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

हाँ.... ये भी सच है


डूबता हुआ सूरज
सूखी हुई नदी
पिघलते पर्वत
उजड़ता जंगल
अब सब अपने से ही लगते है
.
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हाँ.... ये भी सच है
कि इन अपनों से पहले
सपनो वाली एक दुनिया में
सलाम किया करती थी मैं भी 
उगते सूरज को 
संग बह लेता था 
मेरा भी मन...
कल कल करती नदी के
आसमान को छुते पर्वत
और वनों का वो घनापन  
मुझे भी बेहद प्यारा हुआ करता था

4 टिप्‍पणियां:

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

M VERMA ने कहा…

डूबता हुआ सूरज
सूखी हुई नदी
पिघलते पर्वत
उजड़ता जंगल
अब सब अपने से ही लगते है
और अब तो इसी अपनेपन को कायम रखना है शायद.
सुन्दर भाव

Dev ने कहा…

बहुत सही कहा आपने ...

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बेहतरीन!!

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