शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

लुप्त होते खेल और लिप्त होते खिलाडी

बचपन में मैंने गुड़े गुडिया और घर घर वाले खेल खूब खेले ...कोई भाई बहिन नही है और इस्कूल के दोस्त घर के बहुत नजदीक नही रहते थे इसलिए घर में ही किताबे पढ़कर वक़्त बीतता था. कहने का मतलब ये है की मैं outdoor खेल बहुत ज्यादा नही खेल पाई. क्रिकेट, फूटबाल वगैरह की कोई खासी जानकारी मुझे नही है ...आज जब कोई पसंद के खेल के बारे में पूछता है तो जवाब में मुझे जिंदगी नाम का शब्द ही ध्यान आता है ..जिंदगी से बड़ा कोई और खेल है भी तो नही ...............और इस बात से वो लोग बेहतर  तार्रुफ़ रखते होंगे जो ....खेल के अन्दर खेल कर जाते है जिंदगी के खेल को चालाकी से जीतने के लिए.ताजा मामला आई पी एल में हुई धान्द्ली का है. खेल सिर्फ क्रिकेट ही नही है ढेरो खेल है हमारे देश में ...शायद आज जो सामने है उसे देखने के आलावा हमारे पास आजू बाजु देखने का वक़्त  नही है ....खेलो की दशा भी पशुओं से कम नही है .....कुछ  खेल तो डायनासोर की तरह लुप्त हो चुके है कुछ बाघ और चीते की तरह संघर्ष के दौर में है ....जो राजा बन बैठे है वो उन पशुओ की माफिक है  जिनका  महत्व सिर्फ उनकी बाहरी ख़ूबसूरती और  खाल से होने वाली कमाई से है....
किसी गाव कसबे में कुश्ती.. रासकासी ..खो-खो या कोई और खेल दिख भी जाये बड़े इस्तर पर तो पैसे की तूती इस कदर बोल रही है की राष्टिर्ये खेल की भी कोई पूछ नही है ....
            एक तरफ वो खेल हैं जिनके खिलाडिओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए भी पैसा चंदे के मार्फ़त जुटाया जाता है और दूसरी तरफ वो खेल है जो लॉन या नेट की बजाये कुबेर के ढेर पर खेले जाते है ...और खिलाडी के  आलवा भी कई छुपे खिलाडी इन खेलों में शामिल हैं जो अपने दाव पेंच से हरी हुई बाजी को भी मुनाफे के गडित में तब्दील कर जश्न मनाते है .....
आई पी एल में हुआ खुलासा भी जंगल की आग की तरह ही है जो लगातार बढती जा रही है ......शशि थरूर की एक चेहचाहट ने बाकी सारे पक्षियों के पंखो को भी फदफदाना शुरू कर दिया है .....अब देखना ये है की ये फद्फदाहत उन्हें पिंजरे में कैद कर पायेगी या फिर .............मस्त गगन के ये पंछी यूँ ही दुसरे घोंसले से अंडा उठाकर अपना घर बसाते रहेंगे 



4 टिप्‍पणियां:

अनिल कान्त ने कहा…

nice post
keep it up

M VERMA ने कहा…

लिप्त होंगे तो लुप्त होंगे ही

कुश ने कहा…

खेलो का आयत हो रहा है... गोल्फ में पैसा भरपूर लग रहा है.. सुना है अब यहाँ जयपुर में रात को भी खेला जा सकेगा.. दूधिया रौशनी में.. कब्बडी तो दिन में भी कोई नहीं खेलता..

Unknown ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. yaar hasi nahi ruk rahi realy ha ha hi hi

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